बुंदेली

बुंदेलखंड में रक्षाबंधन की दर्दनाक पीड़ा , आपकी आंखों में आंसू ला देहे

।। बुंदेलखंड में पलायन की पीड़ा ।‌ अनिल रावत मंजुल (महोबा) साभार

जौ कैसौ रक्षाबंधन है
बहुत दुखी बहनों का मन है
भइया गए काम खाँ बाहर 
सो सूनौ घर कौ अांगन है

बुन्देलखण्ड में बेकारी है
गाँव गाँव में लाचारी है
कैसें नोन तेल चल पावै
सो दिल्ली सें भई यारी है
बूढ़े बाप मताई घर में
फैलो बहुत उदासीपन हैं
जौ कैसौ रक्षाबंधन है
बहुत दुखी बहनों का मन है

जो विकास की गंग बहाते
बुन्देले परदेश न जाते
कछु काम धन्धौ मिल जातो
घर में रै कैं खूब कमाते
मजबूरी है बाहर जाना
क्योंकि नहीं पास में धन है
जौ कैसौ रक्षाबंधन है
बहुत दुखी बहनों का मन है

आजादी सें बीते कई साल
फिर भी हम क्यों हैं बेहाल
खेती तनकऊ संग न देवै
काम काज की सुस्त है चाल
घर के धंधे चौपट हो गए
नहीं जीविका का साधन है
जौ कैसौ रक्षाबंधन है
बहुत दुखी बहनों का मन है

बाहर वे इतनौ न पावें
त्योहारन में घर आ जावें
सो उनकी जा मजबूरी है
कैंसें वे राखी बंधवावैं
अपनी सूनी देख कलाई
दिल उदास है भारीपन है
जौ कैसौ रक्षाबंधन है
बहुत दुखी बहनों का मन है

कछु चलै लखनऊ दिल्ली की
और कछु भोपाल की
दो भागन में बँटी है धरती
जड़ है यही बवाल की
खन्ड खन्ड बुन्देलखण्ड में
न विकास की कोई किरन है
जौ कैसौ रक्षाबंधन है
बहुत दुखी बहनों का मन है

लेकिन अच्छे दिन आयेंगे
खोया वैभव फिर पायेंगे
अपने सपनों के राज को पाकर
गांव गली सब हर्षायेंगे
फिर पर्वों पर नहीं कहेंगे
“मंजुल” दर्द भरा जीवन है
जौ कैसौ रक्षाबंधन है
बहुत दुखी बहनों का मन है

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