बुंदेली

तरुण सागर : बुंदेली पवन से राष्ट्रीय संत को सफर

  1. तरुण सागर : बुंदेली पवन से राष्ट्रीय संत को सफर
    सचिन चौधरी.

जैन मुनि तरुण सागर जी बेहद गंभीर अवस्था में हैं.दिगंबर संत परंपरा के तहत मृत्यु महोत्सव के लाने संलेखना व्रत प्रारंभ हो चुके..
यूं तो तरुण सागर जी ने जैन संतों की चर्या को पालन करे लेकिन वे अपने एक सपने में काफी हद तक कामयाब रए… जो सपना हतो महावीर खों मंदिरों से निकालकर चौराहे पे लावे को.. अपनी कठिन धार्मिक मान्यताओं के लाने विख्यात जैन धर्म के संत को जो कदम हिम्मत भरो हतो…और जा हिम्मत उनके बुंदेली खून में है…

26 जून 1967 को बुंदेलखंड के दमोह जिले के गुह जी ग्राम जन्मे पवन जैन..की धाराओं से विपरीत बहवे को पहलो कदम 8 मार्च 1981 खों आगे बढ़े, जब 14 साल से भी कम उम्र में पवन कुमार ने अपनी जन्मभूमि बुंदेलखंड त्याग के संन्यास पथ पे चल पड़े.
18 जनवरी 1982 को छुल्लक दीक्षा लेते ही वे आचार्य कुंद कुंद स्वामी के 2000 साल बाद दिगम्बर जैन संत परंपरा में इस उम्र में संन्यास लेने वाले संत बने..
20 जुलाई 1988 खों मात्र , 21 वर्ष की उम्र में आचार्य पुष्पदंत सागर जी के कर कमलों से दीक्षा ग्रहण कर एक नए युग खों जीवंत करवे निकल पड़े तरुण सागर.

अपनी अनूठी प्रवचन शैली के लाने मशहूर भए मुनि तरुण सागर ने जैन धर्म को नई दिशा देवे के मिशन पे काम करे..
उनकी भाषा ,उनके विचार ,और उनकी चर्या , सबको सार बस उनके एक ही वाक्य में छिपे है.
” मैं महावीर को मंदिरों से बाहर निकालकर चौराहे पर लाना चाहता हूं ”
जे बिल्कुल वैसी ही हिम्मत हती जो धार्मिक कट्टरता से अलग हटके अपने अपने समय में महावीर ,गुरुनानक और कबीर ने करी..

मांसाहार के खिलाफ राष्ट्रव्यापी आंदोलन ,लाल किला से लेके विधानसभाओं में प्रवचन, कड़वे प्रवचन, अजैन श्रावकों के घर आहार, और हर धर्म के शिष्यों खों जैन धर्म के नजदीक लावो, जेही तो थी उनकी महावीर खों जैन मंदिरों से बाहर चौराहे पे लियावे की मुहिम…

आज तरुण सागर जी के महावीर चौराहे पर हैं.. ढूंढ रहे अपने तरुण सागर खों ..लेकिन तरुण सागर एक और यात्रा पे हैं.. अपने एक और कथन के पथ पे…

“देश में शमशान घाट और कब्रिस्तान शहर से दूर नहीं बल्कि बीच चौराहे पर होना चाहिए. ताकि लोग आते जाते अपना अंत देख सकें.”

इसी वाक्य में छिपा है मृत्यु महोत्सव को परम सत्य.. अब कड़वे प्रवचन वाले, महावीर खों मंदिरों से मुक्त करावे वाले तरुण सागर इसी महोत्सव के आनंद पर निकल पड़े हैं…

हे महावीर, अपने तरुण के आनंद में ..उनकी परम यात्रा में अपनों आशीष साथ रखियो.. यही कामना…

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