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तालबेहट में अटल जी बोले : डॉक्टर अरविन्द को गौना कराने !

जब तालबेहट में अटल जी बोले : डॉक्टर अरविन्द को गौना कराने !

(अटल बिहारी वाजपेयी जी की यादें ,तालबेहट ललितपुर से )

अटल जी की वाकपटुता तो जग जाहिर हती। शब्दों के जादूगर अटल जी हर वाक्य के केऊ मतलब निकल देत ते। ऐसो ही एक रोचक प्रसंग है 1989 को। विधानसभा चुनाव को टाइम हतो , ललितपु विधानसभा सीट से डॉक्टर अरविन्द जैन भाजपा के प्रत्याशी हते। डॉक्टर अरविन्द जैन को पैतृक गांव गौना है। सो उनको पूरो नाम डॉक्टर अरविन्द जैन गौना वारे प्रसिद्द हतो।  डॉक्टर अरविन्द जैन गौना के समर्थन में सभा करवे अटल जी आये। सभा भई तालबेहट के रामलीला मैदान में। सभा की अध्यक्षता रामनाथ बिलगैयाँ ने करी जबकि संचालन राजेश त्रिपाठी ने करे। राजेश त्रिपाठी उस दिन खो याद करके बताते हैं की वो सभा ऐतिहासिक हती। लेकिन ऊ सभा में अटल जी की एक लाइन बहुत प्रसिद्द भई। डॉक्टर अरविन्द जैन गौना के नाम को एक और मतलब निकालते हुए अटल जी मतदाताओं से बोले के ” आप सबकों डॉक्टर अरविन्द को गौना से गौना कराउने और गौना कराके उने ललितपुर से जिताके लखनऊ विधानसभा में भेजने।” उनको मंतव्य जो हतो के डॉक्टर अरविन्द जैन को गौना से ललितपुर में स्थापित करने और फिर लखनऊ विधानसभा में।
दरअसल ग्रामीण क्षेत्रों में बचपन में शादी होवे के बाद बच्चों के बड़े होवे पे पहली विदा को गौना कहो जात तो , सो शादी के बाद की गौना पृथा खों ,अटल जी ने डॉक्टर अरविन्द जैन के गांव गौना से जोड़ के लोगों को ठहाके लगावे पे मजबूर कर दओ। यही खासियत रही अटल जी की। शायद उनको ही आशीर्वाद हतो की डॉक्टर अरविन्द जैन गौना , कई बार ललितपुर से विधायक चुने गए और प्रदेश सरकार में मंत्री भी रये
तालबेहट की सभा में अटल जी ( साथ में नजर आ रहे राजेश त्रिपाठी और विनोद रेजा )
अटल जी की ललितपुर से जुडी एक और याद श्री अतुल मालवीय की वाल से साभार
भारतीय राजनीति में निर्विवाद छवि रखने वाले संत प्रकृति के अटलजी शायद एकमात्र ऐसे राजनेता हैं जिन्हें दलगत राजनीति से ऊपर उठकर सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है।
#अखिल_भारतीय_जनसंघ की #डॉ_श्यामाप्रसाद_मुखर्जी द्वारा स्थापना के समय से ही #पंडित_दीनदयाल_उपाध्याय के सहयोगी के रूप में एक युवा जुड़ गया जिसका नाम था #अटल_बिहारी_वाजपेयी। इनके जीवन या उपलब्धियों के बारे में चर्चा करने की आवश्यकता ही नहीं क्योंकि ये सर्वविदित हैं।
जनसंघ की स्थापना के साथ ही मुख्य केंद्रों पर सक्रिय सदस्य बनाने की प्रक्रिया प्रारंभ हुई और वर्ष 1952 में पंडित दीनदयाल जी इसी संबंध में #झाँसी पधारे। #ललितपुर से आये प्रतिनिधियों को पंडित जी ने स्वयं #जनसंघ के झंडे प्रदान किये। उस समय जनसंघ से जुड़ना एक अनोखी होने के साथ ही खतरे की भी बात हुआ करती थी, जनसंघियों को प्रशासन एवं शासन प्रत्येक तरह से प्रताड़ित एवं हतोत्साहित करने का प्रयास करता था। आज की पीढ़ी को उस समय के मुट्ठीभर जनसंघियों को किन किन विपरीत परिस्थितियों का सामना करना पड़ता था, कल्पना करना भी असंभव है। ललितपुर से जिन लोगों ने पंडित जी के कर कमलों से जनसंघ की ध्वजा ग्रहण की उनमें प्रमुख थे – मेरे पिताजी स्वर्गीय #पंडित_रमाकांत_मालवीय,
सर्वश्री अनिल चौबे  एवं सुनील चौबे बुढ़बार के पिताजी स्वर्गीय श्री पृथ्वीनारायण चौबे,
सर्वश्री विनोद खैरा, Sunil Kumar Khaira एवं Sharad Khaira के पिताजी स्वर्गीय श्री गौरीशंकर खैरा मदनपुर के स्वर्गीय श्री दीवान रघुनाथ_सिंह सर्वश्री Vinod Chaddha एवं Rajneesh Chaddha के पिताजी एवं श्री Dinesh Chaddha के चाचाजी स्वर्गीय श्री पृथ्वीराज चड्ढा, प्रमुख लोहा व्यापारी स्वर्गीय श्री रामदास गुप्ता, श्री रमेश लोधी जी के पिताजी स्वर्गीय श्री रघुवीरसिंह लोधी। बाद में डॉ दीपक चौबे के पिताजी स्वर्गीय श्री जगदीश नारायण चौबे, Shivam Mishra के दादाजी स्व #पं_श्री_प्रेमनारायण_जी_मिश्र डॉ अरविंद जैन, श्री निहालचंद सिंधी जी, स्वर्गीय रामानंद दफेदार उर्फ़ खुन्नू जी और श्री पंजूमल सिंधी जी भी जुड़े। यदि एक दो लोगों के नाम भूल रहा हूँ तो क्षमा करेंगे।
कहने का तात्पर्य ये है कि गिने चुने ही लोग थे जो प्राणपण से जनसंघ का कार्य करने में जुटे हुए थे।
पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के राष्ट्रीय नेतृत्व में जनसंघ तेजी से आगे बढ़ ही रहा था कि संदिग्ध परिस्थितियों में 11 फरवरी 1968 को उनकी हत्या कर शव को मुगलसराय स्टेशन (अब दीनदयाल उपाध्याय नगर) के यार्ड में फेंक दिया गया। जैसे ही ये दुःखद सूचना मिली, जनसंघ के कार्यकर्ता स्तब्ध थे। मेरे पिताजी ने तांगे में बैठे हुए लाउडस्पीकर से पूरे समय रोते रोते पूरे ललितपुर में घूम घूम कर ये सूचना जनता को दी। तब लोगों के पास जानकारी के अन्य साधन उपलब्ध नहीं थे।
पंडित जी के निधन के पश्चात जनसंघ का दायित्व संभाला माननीय अटलजी ने। ललितपुर में कार्यकर्ताओं ने अपना पूरा जोर ललितपुर एवं महरौनी की दोनों विधानसभा सीटों को जीतने में लगाने के लिए खून पसीना बहा दिया। मेरे पिताजी स्वयं एक एक दिन में साईकल से 100 – 125 किलोमीटर तक की यात्रा कर गाँव गाँव, घर घर जाकर प्रत्याशियों डॉ भगवतदयाल कोरी एवं दीवान रघुनाथ सिंह को विजयी बनाने के प्रयास में लगे हुए थे। ऐसे समय जब जनसंघ की सीमित सीटों पर जीतने की संभावना हुआ करती थी, इन दो सीटों पर संभावित विजय के मद्देनजर राष्ट्रीय नेताओं का फोकस ललितपुर पर हो गया। राष्ट्रीय नेताओं में जिन लोगों ने ललितपुर एवं महरौनी के सघन दौरे किये उनमें प्रमुख थे भैरोंसिंह शेखावत, लालकृष्ण आडवाणी, राजमाता विजयाराजे_सिंधिया, रामप्रकाश गुप्ता, अटलजी एवं उपाध्यक्ष पीताम्बरदास।उस समय संघ एवं जनसंघ के बड़े से बड़े राष्ट्रीय नेता भी होटलों इत्यादि में न ठहरकर सदस्यों के घरों में ही ठहरा करते थे। जहाँ पीतांबर दास जी को हमारे घर में ठहराया गया ।
वहीं सम्माननीय अटलजी को ठहराया गया स्वर्गीय श्री पृथ्वीनारायण चौबे जी (अनिल चौबे, सुनील चौबे बुढ़बार (  बुढ़बार हाउस) के निवास चौबयाना में।
दादा स्वर्गीय श्री परशुराम चौबे जी की बैठक में अटलजी को घेरकर हम सभी बच्चे भी बैठ गए।
अटलजी के सामने जब ये प्रस्ताव रखा गया कि आप स्नानकर आ जायें, कपड़े ये बच्चे धो देंगे तब साफ इंकार कर उन्होंने स्वयं अपने कपड़े धोये। कपड़े धोना इसलिए आवश्यक था क्योंकि मात्र दो कुर्ते, धोती, जैकेट और खद्दर की तौलिया ही उनके पास थे। जनसंघ के बड़े नेताओं एवं स्थानीय कार्यकर्ताओं का अनथक परिश्रम सफल रहा और दोनों विधानसभा सीटों #ललितपुर_महरौनी पर अभूतपूर्व विजयश्री प्राप्त हुई।
बाद में अटलजी की जब भी झाँसी में आम सभाएं होती थीं हमसब ललितपुर से विशेष बसों में 2 या 3 रुपये का शुल्क चुकाकर भाषण सुनने जाया करते थे। आगंतुकों के भोजन की व्यवस्था हेतु उस समय कार्यकर्ताओं के घर घर जाकर पैकेट संग्रहण का कार्य हम संघ के स्वयंसेवक किया करते थे।
बाद में 1980 या 1981 में हमलोगों ने झाँसी में #अखिल_भारतीय_विद्यार्थी_परिषद की तरफ से (मैं ललितपुर नगर अध्यक्ष था) अटलजी को बुंदेलखंड महाविद्यालय के छात्रसंघ के शपथ ग्रहण समारोह में मुख्य अथिति के रूप में आमंत्रित किया। कार्यक्रम के पश्चात हम सभी उनकी कुर्सी को चारों तरफ से घेर कर जमीन पर ही बैठ गए। विभिन्न जिज्ञासाओं पर छात्रों के प्रश्न पर उनके उत्तरों में से दो मुझे अभी भी स्मरण हैं:
1. प्रश्न – पहले आप भारत के #विदेश_मंत्री थे अब नहीं हैं, कैसा अनुभव कर रहे हैं? उत्तर – जब संघ का प्रचारक था और एक #साईकल मिल गयी तो अपने को बड़ा भाग्यशाली महसूस किया, फिर मुझे राष्ट्रधर्म पत्रिका का संपादक बना दिया, लेख लिखने से लेकर प्रूफ रीडिंग, पत्रिकाओं को लखनऊ में जगह जगह वितरण, रेलवे में बुकिंग का कार्य स्वयं करना पड़ता था। राष्ट्रधर्म की बिक्री बढ़ी तो #मोटरसायकिल मिल गई, लगा मुझसे भाग्यशाली कोई दूसरा नहीं। सांसद बना, जनसंघ का अध्यक्ष बना तो #कार मिल गई, मजा आ गया। 1977 में जनता पार्टी की सरकार बनी तो फिर कहना ही क्या – लंदन, बीजिंग, न्यूयॉर्क, पेरिस और दुनिया के कौने कौने में घूमता था। स्थिति ऐसी कि #हवाईजहाज से पैर ही नीचे नहीं उतरता था। अब मंत्री पद से हट गया हूँ परंतु अभी भी सांसद हूँ, कार अभी भी है लेकिन हमारा क्या? फिर साईकल तो क्या पैदल पर भी वापिस आ जायेंगे तो कोई दुःख नहीं होगा।
2. राजनीति में बढ़ते भ्रष्टाचार के लिए क्या कहेंगे? उत्तर – हँसते हुए – मैं क्या कहूँगा भाइयों। मैं तो स्वयं बड़ा #खाऊ_आदमी हूँ। जब जेब में पैसे नहीं हुआ करते थे और ज़ोरों की भूख लगती थी तो ऐसे किसी जानकार को ताड़ता था जिसकी जेब में पैसे हों, उसके कंधे पर हाथ रखकर कहता था आओ घूमकर आते हैं। घूमते घूमते खाने की दुकान, चाटवाले अथवा दिल्ली के परांठे वाली गली में जाकर पेटभर खाता था और मित्र या जानकार को भी खिलाता था, साथी आश्चर्यचकित कि आज तो अटलजी खिला रहे हैं। खाने के पश्चात साथी को कहता था – यार मेरी जेब तो खाली है तुम्हारे पास हो तो भुगतान कर दो। हर बार नए आदमी को फँसाने के गुंताड़े में रहता था, तलाशता रहता था कि किसको मूंडा जाये।
ऐसे महान एवं सरल व्यक्तित्व के चरणों में हम जैसे अकिंचनों को बैठने का ही अवसर मिला इसी में हम अपने जीवन को धन्य समझते हैं। इन महान व्यक्ति के लिए उनकी नहीं परंतु #कबीरदास की ये रचना से अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ:
यह चादर सुर नर मुनि ओढ़ी
ओढ़ के मैली कीनी चदरिया
दास कबीर जतन करि ओढ़ी
जस की तस धर दीनी चदरिया।
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