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भोपाल के तालाब के साथ नगर निगम की साजिश या घोटाला !

साभार अरुण दीक्षित , वरिष्ठ पत्रकार।

मेरे प्यारे भोपाली दोस्तो
जय भोपाल
पिछले कुछ दिनों से आप सब स्थानीय अखबारों में अपने बड़े तालाब को लेकर खबरें पढ़ रहे हैं।तालाब का दायरा घट गया! तालाब सूख गया!तालाब डेड स्टोरेज से भी नीचे पहुंच गया।तकिया टापू तक लोग कदमताल करते हुये जा रहे हैं।लोगों ने श्रमदान करके तालाब से मिट्टी निकाली।कुछ वीआईपी भी तालाब के उद्धार के लिए आगे आये! ये हेडिंग रोज अखबारों में छप रहे हैं।पुराने शहर के पटियों से लेकर काफी हाउस तक तालाब की चर्चा है।नगरनिगम का दफ्तर हो या बल्लभ भवन, तालाब की चर्चा कर हुक्मरान दुबले हुए जा रहे हैं।
एक दो दिन बाद,जब पानी बरस जाएगा तो आप स्थानीय अखबारों में खबरें पढ़ेंगे कि कैसे तालाब को बचाने के लिए सरकारी मशीनरी ने जी तोड़ कोशिश की!खासतौर पर भोपाल नगर निगम के भगीरथ प्रयासों का जिक्र बड़े बड़े अक्षरों में होगा।
आप अखबार में ये सब पढ़े उससे पहले मैं आपको कुछ बताना चाहता हूं। 24 जून दिन सोमबार को मैं सूखे पड़े तालाब को देखने शहर की दूसरी तरफ गया।भदभदा रोड पर बिशनखेड़ा और गोरा गांव से आगे जाकर मैंने अपने तालाब में जो दृश्य देखा वह चौकाने वाला था।करीब दो किलोमीटर के दायरे में जगह जगह गड्ढे खुदे हुये थे।कुछ टुकड़ों में चार से छह फीट गहरी नालियां खोदी गयी हैं।इनके दोनों ओर वह मिट्टी जमा है जो खोदी गयी है।
मैंने पूरे इलाके में घूम कर देखा तो पता चला कि दो पोकलिन मशीनें खुदाई में लगी हैं।एक जगह पर हमें नगर निगम का तम्बू तना मिला।उससे पता चला कि नगर निगम का झील संरक्षण विभाग झील को बचाने के लिए युद्ध स्तर पर काम कर रहा है।


मुझे कुछ कर्मचारी भी मिले !मैंने उनसे यह जानना चाहा कि यह जगह जगह नालियां क्यों बना रहे हैं। नाम न बताने की शर्त पर एक कर्मचारी ने बताया कि एक विशेषज्ञ दल की अनुशंसा पर जलीय जीवों को बचाने के लिए ये नालियां खोदी जा रही हैं। बीच में जो मिट्टी के ढेर हैं उन पर हम पौधे लगाएंगे।इससे हमारा तालाब और जीवजन्तु सब सुरक्षित रहेंगे।
मैंने पूछा कि खुदाई के बाद मिट्टी क्यों नही उठबाई गयी। हजारों ट्रक मिट्टी तालाब में ही क्यों पड़ी है।इसे आसपास के किसानों को दिया जा सकता था।इस पर उन्होंने कहा कि आसपास के किसानों को इसलिये मिट्टी नही दी क्योंकि वे अपने खेतों में यह मिट्टी डालेंगे।वह फिर बहकर बापस तालाब में ही आ जायेगी।सरकारी विभागों को मिट्टी दी जा रही है।वनविभाग भी ले रहा है।
लेकिन जब उनसे यह पूछा गया कि अगले दो दिन मानसून आ जायेगा। सरकारी पैसे यानी कि हमारे द्वारा दिये गए टैक्स के पैसे से ठेकेदार से यह खुदाई करबायी जा रही है।इसका बिल लाखों में तो होगा ही।
नगर निगम के झील संरक्षण विभाग के कर्मचारियों ने माना कि अब मानसून से पहले तालाब से मिट्टी हटाना सम्भव नही है।यह भी माना कि बारिश के बाद यह मिट्टी फिर तालाब का हिस्सा बन जाएगी। उन्होंने यह भी माना कि साहब लोगों में जिस तरह की नालियां खुदबाई हैं ,अगले साल तक उनका नामोनिशान मिट जाएगा।
एक बुजुर्ग कर्मचारी ने यह भी बताया कि इन नालियों को खुदबाने की बजाय यदि साहब लोगों ने पूरे सूखे इलाके से तीन तीन फुट मिट्टी उठबाई होती तो सच में तालाब को बचाने की सही कोशिश होती!
सचाई यह है कि नगर निगम के झील संरक्षण विभाग ने जो काम किया है वह इसी बारिश में मिट्टी में मिल जाएगा।कागजों में विशेषज्ञों की योजना पर अमल हो जाएगा।निगम के अफसरों के दाबों की खबरें उनकी तस्वीरो के साथ अखबारों में छप जाएंगी।सरकार तालाब को लेकर कितनी चिंतित है यह भी बता दिया जाएगा!
लेकिन वास्तविकता क्या है वह आप इन तस्वीरों में देखिये।नगर निगम के बडे अफसर इस बारे में क्या कहेंगे यह मैं अभी नही बता सकता।क्योंकि उनसे मेरी बात नही हुई है।मैं बात करना चाहता था लेकिन आप जानते हैं कि साहब लोगों से सूरज ढलने के बाद बात कर पाना कितना कठिन है।सहज उपलव्ध रहने बाले अपने महापौर से भी बात नही हो पाई।उनका फोन कह रहा था-इस रूट की सभी लाइनें व्यस्त हैं।
अतः मैंने सोचा कि आप लोगों को यह सब बता दूं।क्योंकि कल पानी बरस जाने के बाद सब कुछ पानी में मिल जाएगा।फिर आपको बही मानना पड़ेगा जो नगर निगम के झील संरक्षण विभाग के अफसर बताएंगे।

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