प्रदूषण पे बुंदेली कवि प्रताप जी की सुन्दर बुंदेली रचना

प्रदूषण
————-
गाड़ी घोड़ा घर-घर चानें,
सब घर भर के लानें।
मचौ प्रदूषण दुनियां भर में,
रोगी डरे दिखानें।
आसमान पिट्रोल औ डीजल,
खाली करै खजानें।
मानत नैंयां शान के मारे,
थोंदें लगे फुलानें।
कयें प्रताप चेत अब जल्दी,
सांसें ना लै पानें।

प्रदूषित पानी
———-++-+——-
बिगरौ सब जांगा कौ पानी,
सबकी जेई कहानी।
नदियां तला हेंड पंपन कौ,
भयौ प्रदूषित पानी।
पानी भरत वहीं पै कचरा,
फेंकें कर मनमानी।
नाले डारे नदियन तालन,
बसें घाट जिद ठानी।
ढोर ,साग,फल बयी पानी के,
खाबें सबरे प्रानी।
सुधर प्रताप जाऔ तुम जल्दी,

पी पैहौ ना पानी।

पहाड़ों को मिटाना
——————–
क्रेसर पीसत जातपहारन ,
जंगल लगे बिगारन।
धुंध उठी छायी फसलन पै,
मानुष मरे हजारन।
मानसून के रोकनबारे,
गड्डा बनगय खारन ।
बेंच प्रताप बुंदेली धरनीं,

काटें पांव कुलारन।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *