UP: सरसों के खेत में रेशम दिखा हड़पी सब्सिडी, 200 लोगों ने किया फर्जीवाड़ा; जियो टैगिंग से हुआ खुलासा
प्रदेश में रेशम उत्पादन के नाम पर जमकर फर्जीवाड़ा किया गया है। गेहूं-सरसों और लाही के खेत में रेशम की पैदावार दिखाकर करोड़ों रुपये की सब्सिडी हड़प ली गई। सब्सिडी की रकम से रेशम उत्पादन के लिए शेड बनाने की जगह घर बना लिए गए। करीब 200 लोगों ने यह खेल किया है। जियो टैगिंग से इस घोटाले का पर्दाफाश हुआ है।
अब फर्जीवाड़ा रोकने के लिए रेशम विभाग को हाईटेक किया गया है, जिससे वास्तविक किसानों को सरकार से मिलने वाली सब्सिडी का लाभ मिल सके। रेशम के लिए जरूरी उपकरणों की टूल किट में भी बंदरबांट की गई। टूल किट वितरण के नाम पर विभाग के ही अधिकारियों और कर्मचारियों द्वारा कंपनी बनाकर घालमेल करने की शिकायतें मिली हैं। इसकी जांच की जा रही है।
लगभग छह करोड़ की सब्सिडी पानी में
एक रेशम उत्पादक को शहतूत के पौधे से लेकर भवन निर्माण तक लगभग 3.30 लाख रुपये की सब्सिडी मिलती है। इसमें 30 हजार रुपये टूल किट के भी शामिल हैं। विभागीय जांच में खुलासा हुआ कि लगभग 200 लोगों ने एक ग्राम रेशम पैदा किए बिना ही तीन-तीन लाख रुपये हड़प लिए। अब फर्जीवाड़ा खत्म करने के लिए नए सिरे से वेबसाइट बनाई गई है जिसका नाम है-सेरीकल्चर.यूपी.जीओवी.इन।
पौधे से लेकर भवन तक की टैगिंग
अभी सब्सिडी हड़पने के लिए जालसाज जमीन किसी और की, नींव किसी और की, भवन किसी और का और लिंटर कहीं और का…दिखाकर सरकार को करोड़ों की चपत लगा रहे थे। इसे रोकने के लिए जियो टैगिंग यानी जियो रिफरेंसिंग की जा रही है।
ऐसे-ऐसे फर्जीवाड़े
केस-1 : गोंडा के लक्खा बौंदी निवासी राम जानकी ने रेशम उत्पादन के बजाय घर की पहली मंजिल बनवा ली।
केस-2 : गोंडा के नारायणपुर निवासी देवीदीन ने खाली मैदान में ही शहतूत उगा लिया।
केस-3 : बस्ती के पास संतोष कुमारी के नाम पर सब्सिडी लेकर पैसा कहीं नहीं लगाया।
केस-4 : बहराइच के राम प्रसाद ने गेहूं के खेत में रेशम का उत्पादन दिखा दिया।
अब सब्सिडी के लिए इतने चेकप्वाइंट
1-पंजीकरण के समय लाभार्थी के फोन पर ओटीपी आएगा। ओटीपी से सत्यापन पर ही पंजीकरण होगा।
2-किसान शहतूत के पौधे लगाने के बाद फोटो खींचकर जियो टैग कराएगा। तब सैपलिंग का पैसा मिलेगा। छह महीने बाद सैपलिंग बड़ी हो जाएगी, तब तीसरे चरण का पैसा मिलेगा।
3-इसके बाद किसान भवन की सब्सिडी के लिए पात्र होगा। भवन की जमीन पर खड़े होकर फोटो खींचकर जियो टैगिंग करेगा। तब पैसा मिलेगा।
4-फिर नींव की फोटो और उसकी जियो टैगिंग होगी। तब अगली किस्त जारी होगी।
5-लिंटर डालने के बाद उसकी फोटो और जियो टैगिंग। इसके बाद ही अगली किस्त मिलेगी।
6-अंत में भवन की फोटो और जियो टैगिंग करनी होगी। तभी अगली किस्त मिलेगी। हर बार सभी की लोकेशन सौ मीटर के दायरे में आनी चाहिए ताकि फर्जीवाड़ा न हो सके।
7-इसके बाद टूल किट दी जाएगी। टूल किट सप्लाई करने वाली कंपनी का जीएसटी बिल लिया जाएगा। कंपनी का सत्यापन होगा। ये कदम इसलिए उठाया गया है ताकि विभाग के ही कर्मचारी अपने परिजनों के नाम पर टूल किट का पैसा ट्रांसफर न कर लें।
इसलिए है रेशम पर इतना फोकस
3500 टन रेशम की यूपी में मांग, उत्पादन महज 300 टन। हालांकि उत्पादन 20 वर्षों में 14 गुना बढ़ा।
3000 टन रेशम की खपत सिर्फ बनारस में। आजमगढ़, मऊ, गोरखपुर, खलीलाबाद, अंबेडकरनगर, लखनऊ व मेरठ भी क्लस्टर।
1.25 लाख रुपये की होती है अतिरिक्त कमाई एक एकड़ खेत से
कर्नाटक है यूपी का सबसे बड़ा सप्लायर। ताइवान और दक्षिण कोरिया से भी होता है आयात।
रेशम उद्योग में अपार संभावनाएं हैं। प्रदेश में रेशम की जितनी जरूरत है, उसका सिर्फ 10 फीसदी उत्पादन होता है। इसके उत्पादन में तेजी लाने के लिए फर्जीवाड़ा न हो सके और वास्तविक किसानों व कीटपालकों को सरकारी योजनाओं का लाभ मिले, इसके लिए जियो टैगिंग लागू की गई है। नई वेबसाइट इस महीने तैयार हो जाएगी। -सुनील कुमार वर्मा, विशेष सचिव एवं निदेशक रेशम