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चाँदी को कलदार (सिक्का) बुंदेली व्यंग्य

चाँदी को कलदार (सिक्का)

(व्यंग्य सन्दर्भ- कमलनाथ खों विनय सहस्रबुद्धे द्वारा पुराना चांदी का सिक्का बतावे वारो बयान )

‘काए, सई में चाँदी के कलदार की कौनउ बखत नईं बची का ?’ दद्दा ने जाने कहाँ से सुन लई हती, बड़े घबराए लग रए हते- ‘हमाए पास भी एक विक्टोरिया धरो है बिटवा ! जे चलहै कि ना चलहै?’
‘लाओ देव,’ हमने बात टालबे के लाने कही- ‘हम चलाए देत।’
दद्दा ने सई में चाँदी को सिक्का पकड़ा दओ। अब हमाई बारी हती चलाबे की। हमने फटफटी उठाई औ’ पहुँच गए नए नए खुले मॉल में। हम सोचत ते कि विक्टोरिया की बड़ी कीमत है सो अपने लाने जीन औ’ टी शर्ट की खरीदी कर लई। फिर पहुँचे पेमेंट करबे और रुपैय्या की जगह काउंटर में चाँदी को कलदार धर दओ। केशियर ने ऐसे देखो जैसे हम कौनउ अजूबा हों।
‘जे का है ?’ केशियर ने पूछी।
‘पेमेंट है और का ?’ हमने जवाब दओ।
‘जो सिक्का न चलहै।’ काउंटर वाले ने रूखो सो जवाब दओ।
‘चाँदी को कलदार आय जो !’ हमने शेखी बघारी- ‘तुमने तौ देखो भी न होहै। बड़ो कीमती है। विक्टोरिया की फोटू वालो आय। समझे !’

‘हमने कही न कि जो न चलहै।’ केशियर ने टका सो जवाब दओ- ‘चलबे वाली करेंसी निकालो।’
हम का करते ! जेब ढीली करी औ’ बाहर निकर आए। हमाई समझ में आ गई कि कलदार कौनउ दुकान में न चलहै, सो सीधे बैंक पहुँच गए। हमने रकम जमा कराबे वालो फारम भरो औ’ लाइन में लग गए। हमाओ नम्बर आओ सो फारम के साथ विक्टोरिया पकरा दओ। बैंक को केशियर भी हमें वैसइ देखन लगो जैसो मॉल वालो घूरत रहो। ‘जे चाँदी को सिक्का जमा कराने हैं अपने खाते में।’ हमने बताई।
‘बैंक में कानूनी करेंसी जमा होत।’ केशियर ने घुड़की दई- ‘जे न चलहै इतै !’
‘ईकी कौनउ कीमत नईंआ का ?’ बात अच्छी नईं लगी सो हमने भी पूछ लई ?
‘कीमत बताहै सुनार।’ केशियर झल्ला गओ- ‘जे बैंक है। इतै जो न चलहै काए से कि जे करंट करेंसी नईं है।’
हम अपनो सो मुँह लेकै बाहर आ गए। फिर गए अपने दोस्त सोनी की दुकान में। हमने चाँदी को सिक्का हाथ में धरो तो ऊके आंखन की चमक देखबे लायक हती।
‘यार, ई विक्टोरिया की कीमत तो बताव !’ हमने पूछी।
‘चाँदी के भाव से बहुत जादा।’ यार ने बताई- ‘आजकल मिलत कहाँ हैं जे ? पर पूछ काए रहे, बेचने है का ?’
‘नईं यार !’ हम बोले- ‘बीजेपी के नेता ने कही हती की कमलनाथ चाँदी के पुराने सिक्का हैं जो अब न चलहैं। सो देख रए हते कि हमाओ चाँदी को सिक्का भी चलहै कि नहीं।’
‘तौ का देखो ?’ सोनी ने पूछो।
‘जेई कि चाँदी को सिक्का करेंसी जैसो बिलकुल न चलहै।’ हमने अपनी समझ से बताई- ‘हाँ, अगर वो बिकै तो बहुत अच्छी कीमत मिल जैहै।’
पता नईं काए, सोनी जी जोर से हंसन लगे।

– रमेश रंजन त्रिपाठी (रिटायर्ड डिप्टी ट्रांसपोर्ट कमिश्नर एवं साहित्यकार)

 

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