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सागर के दानवीर महानायक डॉ हरिसिंह गौर के लिए भारत रत्न की मांग करेगी सकल दिगंबर जैन समाज सागर

सागर के महानायक और सागर विश्वविद्यालय के संस्थापक डॉ हरिसिंह गौर जिन्होंने अपने जीवन भर के पूरी कमाई बुंदेलखंड के ही नहीं अपितु पूरे देश के बच्चों के लिए उच्च शिक्षा मिले इस हेतु सागर विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए समर्पित की ।डॉ हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय के नाम से सागर का नाम पूरे विश्व मे जाना जाता है। 26 नवंबर को मप्र के माननीय मुख्यमंत्री शिवराज सिंह जी चौहान के सागर आगमन पर राष्ट्रपति एवं प्रधानमंत्री के नाम से सकल दिगंबर जैन समाज सागर डॉ हरिसिंह गौर को भारत रत्न मिले इस हेतु ज्ञापन सौंपेंगी।

कौन थे हरीसिंह गौर

डॉ॰ हरिसिंह गौर, सागर विश्वविद्यालय के संस्थापक, शिक्षाशास्त्री, ख्यति प्राप्त विधिवेत्ता, न्यायविद्, समाज सुधारक, साहित्यकार (कवि, उपन्यासकार) तथा महान दानी एवं देशभक्त थे। वह बीसवीं शताब्दी के सर्वश्रेष्ठ शिक्षा मनीषियों में से एक थे। वे दिल्ली विश्वविद्यालय तथा नागपुर विश्वविद्यालय के उपकुलपति रहे। वे भारतीय संविधान सभा के उपसभापति, साइमन कमीशन के सदस्य तथा रायल सोसायटी फार लिटरेचर के फेल्लो भी रहे थे।उन्होने कानून शिक्षा, साहित्य, समाज सुधार, संस्कृति, राष्ट्रीय आंदोलन, संविधान निर्माण आदि में भी योगदान दिया। उन्होने अपनी गाढ़ी कमाई से 20 लाख रुपये की धनराशि से 18 जुलाई 1946 को अपनी जन्मभूमि सागर में सागर विश्वविद्यालय की स्थापना की तथा वसीयत द्वारा अपनी निजी सपत्ति से 2 करोड़ रुपये दान भी दिया था। इस विश्वविद्यालय के संस्थापक, उपकुलपति तो थे ही, वे अपने जीवन के आखिरी समय तक इसके विकास व सहेजने के प्रति संकल्पित रहे। उनका स्वप्न था कि सागर विश्वविद्यालय, कैम्ब्रिज तथा ऑक्सफोर्ड जैसी मान्यता हासिल करे। उन्होंने ढाई वर्ष तक इसका लालन-पालन भी किया। डॉ॰ हरीसिंह गौर एक ऐसा विश्वस्तरीय अनूठा विश्वविद्यालय है,

जिसकी स्थापना एक शिक्षाविद् के द्वारा दान द्वारा की गई थी। डॉ॰ हरीसिंह गौर सन् 1912 में बैरिस्टर होकर स्वदेश आ गये। उनकी नियुक्ति सेंट्रल प्रॉविंस कमीशन में एक्स्ट्रा सहायक आयुक्त´ के रूप में भंडारा में हो गई। उन्होंने तीन माह में ही पद छोड़कर अखिल भारतीय स्तर पर वकालत प्रारंभ कर दी व मध्य प्रदेश, भंडारा, रायपुर, लाहौर, कलकत्ता, रंगून तथा चार वर्ष तक इंग्लैंड की प्रिवी काउंसिल में वकालत की, उन्हें एलएलडी एवं डी. लिट् की सर्वोच्च उपाधि से भी विभूषित किया गया। 1902 में उनकी द लॉ ऑफ ट्रांसफर इन ब्रिटिश इंडिया पुस्तक प्रकाशित हुई। साल 909 में दी पेनल ला ऑफ ब्रिटिश इंडिया भी प्रकाशित हुई जो देश व विदेश में मान्यता प्राप्त पुस्तक है। इसके अतिरिक्त डॉ॰ गौर ने बौद्ध धर्म पर दी स्पिरिट ऑफ बुद्धिज्म नामक पुस्तक भी लिखी। गौर साहब ने 1929 में "स्प्रिट आफ बुद्धिज़्म" के शीर्षक से लिखा, इस किताब की प्रस्तावना कविवर रवींद्र नाथ टैगोर द्वारा लिखी गई । इस पुस्तक को पढ़कर डॉ भीमराव अंबेडकर भी बहुत प्रभावित हुए । जापान में इस बौद्ध दर्शन से गौर साहब को धर्मगुरु का सम्मान दिया गया । सन् 1921 में केंद्रीय सरकार ने जब दिल्ली विश्वविद्यालय की स्थापना की तब डॉ॰ सर हरीसिंह गौर को विश्वविद्यालय का संस्थापक कुलपति नियुक्त किया गया। 9 जनवरी 1925 को शिक्षा के क्षेत्र मेंसर´ की उपाधि से विभूषित किया गया, इसके बाद डॉ॰ हरीसिंह गौर को दो बार नागपुर विश्वविद्यालय का कुलपति नियुक्त किया गया। डॉ॰ सर हरीसिंह गौर ने 20 वर्षों तक वकालत की तथा प्रिवी काउंसिल के अधिवक्ता के रूप में शोहरत अर्जित की। वे कांग्रेस पार्टी के सदस्य रहे, लेकिन 1920 में महात्मा गांधी से मतभेद के कारण कांग्रेस छोड़ दी। वे 1935 तक विधान परिषद् के सदस्य रहे। वे भारतीय संसदीय समिति के भी सदस्य रहे, भारतीय संविधान परिषद् के सदस्य रूप में संविधान निर्माण में अपने दायित्वों का निर्वहन किया। विश्वविद्यालय के संस्थापक डॉ॰ सर हरीसिंह गौर ने विश्वविद्यालय की स्थापना के बाद नागरिकों से अपील कर कहा था कि सागर के नागरिकों को सागर विश्वविद्यालय के रूप में एक शिक्षा का महान अवसर मिला है, डॉ॰ गौर ने शिक्षा के क्षेत्र में बेहतरीन योगदान दिया

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