हटा: किसी को सदैव दुःख नहीं मिलता या सदैव सुख का भी लाभ नहीं होता: डॉ श्रीमस्तबाबा महाराज
हटा । श्रीकृष्ण प्रणामी मन्दिर माधवमंगल धाम लिधौरा हारट हटा में चल रहे निजनाम तारतम महामंत्र के 400 वां (चतुर्थ शताव्दी पर्व) 2021 के शुभ अवसर पर श्रीमद्भागवत कथा एवं ब्रम्हासान महोत्सवमें पन्नाधाम से पधारे कथाबचक संत डॉ मस्तबाबा महाराज ने कथा में कहा विद्वत्वंच नृपत्वंच नैव तुल्यं कदाचन स्वदेशे पूज्यते राजा विद्वान् सर्वत्र पूज्यते । महापुरूष कहते है कि न चोर हरण कर सकता, न चोर चोरी कर सकता, न राजा अधिपत कर सकता, भाई भी जिसका बटवारा नहीं कर सकता, बोझ भी नहीं है, खर्च करने पर घटती नही बल्कि बढती है, विद्या ज्ञान, भगवत कथा ऐसी ही सम्पति है, विद्वानों की सब जगह पूजा होती है, विद्वता और राज वैभव इन दोनो की तुलना कदापि नही हो सकती है ,राजा तो केवल अपने देश में ही सम्मानित होता है किन्तु विद्वान का सम्मान सर्वत्र होता है। जिसके पास विद्या ज्ञान रूपी सम्पति होती है वह सदैव हर जगह पूजनीय रहता है, विद्या ज्ञान को प्राप्त करने के लिए नियमित स्वाध्याय किया जाना आवश्यक है, पढाई जीवन में कभी खत्म नहीं होती है, यह बात ग्राम लिधौरा में चल रही श्रीमद भागवत महापुराण कथा के अपने मंगल प्रवचन में कही, उन्होने कहा कि जो प्राप्त है वही पर्याप्त है, सुख सम्पति वैभव जो भी मिला है, वह भगवत कृपा, माधव का प्रसाद माने क्योकि चिंता ऐसी डाकिनी है जो इंसान का कलेजा काट देती है, इस पर डाक्टर की दवा भी काम नहीं करती है, महाराज ने रामायण का प्रसंग सुनाते हुए कहा कि करम प्रधान विश्व करि राखा । जो जस करहि सो तस फल चाखा । सारे कर्मो का फल यही मिलता है, जो कार्य कर रहे हो कभी उस पर भी विचार कर लिया करों, लोग क्षणिक सुख के लिए गलत मार्ग अपना लेते है, उसके परिणाम इतने घातक होते है, कि जिन्दगी भर उस कलंक को धो नहीं पाते है, भले ही जिन्दगी भर तुमने नेक कार्य किये हो लेकिन एक गलत कार्य आगे के सारे रास्ते बंद कर देता है, जैसे हजार लिटर दूध को खटाई की एक बूंद खराब कर देता है इसी प्रकार कलंक होता है, जो सारे अच्छे कार्य पर पर्दा डाल देता है ।
मजराज ने कहा कि बडी विडम्बना है कि ज्ञान है नहीं और स्वयं को अज्ञानी मानने तैयार नहीं है, गुरू को मानते है पर गुरू की बात नहीं मानते, गुरू बनाने के पहले गुरू का आंकलन जरूर कर लिया करो, शिष्य की निष्ठा पर ही गुरू की कृपा होती है, भगवान की भक्ति भोग विलासता प्राप्ती के लिए नहीं बल्कि माधव तक पहुंचने के लिए होनी चाहिए ।
उन्होने वर्तमान व्यवस्था पर कटाक्ष करते हुए कहा कि अक्सर टूट जाते है वो रिश्ते गरीबी में जो खास होते है, हजारों दोस्त बन जाते है, जब पैसा पास होता है, लोग अमीर आदमी के घर लाखों रूपये के उपहार ले जाते है लेकिन गरीब के घर उसका ही खा कर आ जाते है, बडे को कोई नियम नहीं होता है, नियम को केवल गरीबों के लिए होते है, यदि मानव होकर मानव के काम न आ सके तो यह जीवन किस काम का है, गरीब को तो कोई अपने घर का बुलावा तक नहीं भेजता है, पैसा वालो के तो गलत कार्यो पर भी पर्दा डल जाता है, कभी भी गरीबी से विचलित मत होना, जब भी घर से निकलो मुस्कराते हुए निकलना, केवल परमात्मा पर विश्वास रखना, उन्होने वर्तमान मित्रता पर भी कहा कि आज की मित्रता केवल भोगता के लिए हो रही है, कभी भी किसी की गरीबी का मजाक नहीं उडाना चाहिए, जरूरतमंद व्यक्ति की मदद करने से बढकर कोई मानवता और धर्म नहीं हो सकता है ।