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दिल्ली ,दंगा और लोकतंत्र

@ राकेश अचल

विधानसभा चुनाव के दौरान लगातार गर्म हुई दिल्ली में अचानक दंगे कैसे होने लगे ? जिस दिल्ली में दो माह से शाहीन बाग़ का आंदोलन शांतिपूर्ण तरिके से चल रहा है ,उस दिल्ली में आखिर दंगा किसने करवाए और किसने उन्हें होने दिए और कौन इन दंगों का फायदा उठाना चाहा है ? ये कुछ ऐसे सवाल हैं जो लोकतंत्र के आसपास मंडराते नजर आते हैं ।दिल्ली दंगे में एक दर्जन से अधिक लोग मारे जा चुके हैं ,जो बेहद दुर्भाग्यपूर्ण हैदिल्ली में दंगा उस मौर्या शेरटन होटल के आसपास भी हुआ जहां दुनिया के सबसे ताकतवर देश अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रम्प अतिथि के रूप में ठहरे हैं ।क्या उन्हें इस दंगे की भनक नहीं लगी होगी ? और यदि लगी होगी तो वे भारत और भारत के प्रधानमंत्री के बारे में क्या सोचते होंगे ?ये दंगे यदि किसी अशिक्षित ,पिछड़े और मुख्यधारा से कटे इलाके में होते तो उन्हें अलग ढंग से लिया जाता ,किन्तु दंगे देश की राजधानी में हुए हैं इसलिए मामला कुछ ज्यादा ही गंभीर है ।दिल्ली का चरित्र एकदम अलग है। यहां विधानसभा है,निर्वाचित सरकार है लेकिन पुलिस केंद्र सरकार की है ।इसलिए दंगों को लेकर जबाबदारी का मुद्दा हमेशा केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच फ़ुटबाल बना रहता है। दिल्ली के हाल के दंगे के लिए भी आरोप-प्रत्यारोप का दौर चल रहा है लेकिन दंगे क्यों हुए,इसके लिए जबाबदार कौन है ,कोई नहीं बताना चाहता ।जाफराबाद थाने में यदि भाजपा नेता कपिल मिश्रा के खिलाफ दंगा भड़काने की शिकायत दर्ज कराई जाती है तो दूसरी तरफ ऐसे ही आरोप आप और कांग्रेस पर भी लगाए जा रहे हैं ।पुलिस ने डेढ़ दर्जन से अधिक मामले भी दर्ज किये हैं ,पर ये सब दबगे के बाद की कार्रवाई है ।असली सवाल ये है कि दंगे आखिर हुए तो कैसे हुए,यदि दिल्ली में दंगा होता है तो कहा जा सकता है कि -‘दिए के नीचे अन्धेरा’ न सिर्फ है बल्कि बहुत गहरा है ।जिस दिल्ली में देश की सरकार है ,दिल्ली की अपनी स्थानीय सरकार है वहां की पुलिस और खुफिया टीम को दिल्ली के दंगों की भनक तक नहीं है तो बाक़ी देश का क्या हाल होगा ?दिल्ली के दंगे हो गए लेकिन किसी भी पार्टी का कोई ‘गांधी’ दिल्ली के अशांत इलाकों में शान्ति स्थापना करने नहीं गया, टीवी के परदे पर गला फाड़ने के लिए सब मौजूद नजर आये ।सवाल ये है कि क्या दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और देश के गृहमंत्री या उनके किसी प्रतिनिधि को दंगाग्रस्त इलाकों में जाने की पहल नहीं करना थी ?क्या आरोप-प्रत्यारोप से दिल्ली के दंगे शांत हो जायेंगे ?दंगे दरअसल किसी साम्प्रदायिक मुद्दे को लेकर नहीं हुए ।दंगों के पीछे जो मुद्दे बताये जा रहे हैं वे पूरी तरह से सियासी हैं ,इसलिए इन दंगों के लिए दिल्ली की सियासत जिम्मेदार है ।दंगों में शामिल लोगों की तस्वीरें अख़बारों,टीवी न्यूज चैनलों और सोशल मीडिया पर साफ़ नजर आ रहीं हैं फिर दंगों का सच जाने में दिक़्क़त कहाँ है ?क्यों नहीं दंगों में सक्रिय भूमिका निभाने वालों के साथ ही इन दंगों की साजिश करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाती ।दुनिया जानती है कि दंगे हमेशा से सियासी जरूरत रहे हैं, दंगे भड़काने वाले लोग किसी से छिपे नहीं होते ,उन्हें किसका संरक्षण होता है ,ये दुनिया जानती है ।देश में शायद ही कोई ऐसा सियासी दल हो जो इस तरह के आरोपों से घिरा न हो लेकिन दंगा करने में सिद्धहस्त लोग कुछ ही हैं ,संयोग से कहीं-कहीं सत्ता में भी उनकी भागीदारी है ।दिल्ली के दंगे में एक पुलिस कर्मी समेत चार लोग मरे गए ,ये एक बड़ा नुक्सान है ।दिल्ली यदि सतर्क होती तो शायद ही ये चार लोग मारे जाते ,लेकिन दिल्ली चुनाव के बाद सो रही थी इसलिए दिल्ली में दंगे हो गए ।दिल्ली के दंगों की आग देश के दूसरे हिस्सों में न पहुंचे इसके लिए अब सरकार से जयादा समाज को सतर्कता बरतने की जरूरत है ।दिल्ली के दंगे अमेरिका के राष्ट्र्पति के भारत दौरे के कारण सुर्ख़ियों में नहीं हैं,उन्हें सीमित और निर्धारित स्थान मिला है ,अन्यथा इन दंगों की आग में कम से कम टीवी चैनल तो झुलस कर मर ही जाते ।दिल्ली के बाद देश के दूसरे राज्यों में भी विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं इसलिए बहुत जरूरी है कि देश सतर्क रहे ,दंगे न होने दे और जो दंगे करने की साजिश रचें उन्हें बेनकाब किया जाये ।दंगों से समाजिक ताना-बाना तो टूटता ही है साथ ही लोकतांत्र भी घायल होता है और दंगों के इन जख्मों पर कोई मरहम काम नहीं करती ।दिल्ली को दंगों का कड़वा अनुभव है ,इसलिए बहुत जरूरी है कि दिल्ली वाले खुद भी इस जहर से अपने आपको बचाएं। भगवान हुकमरानों को सद- बुद्धि दे !@ राकेश अचल


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