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हिंदुओं से अलग धर्म चाहते हैं 50 लाख लोग:सरना को अलग धर्म बनाने की मांग

Written by : vipin viswakarma

दोस्तों पटना के गांधी मैदान में शुक्रवार को 5 राज्यों के 10 हजार से ज्यादा लोग जमा हुए। इनकी एक ही मांग थी कि भारत सरकार ‘सरना धर्म कोड’ को लागू करे। इसका मतलब ये हुआ कि अगले जनगणना फॉर्म में दूसरे सभी धर्मों की तरह सरना के लिए अलग से एक कॉलम बनाया जाए। इसके साथ ही हिंदू, मुस्लिम, क्रिश्चयन, जैन, सिख और बौद्ध की तरह ‘सरना’ को भी अलग धर्म का दर्जा मिले।

पूरा मामला क्या है


2011 की जनगणना के मुताबिक भारत में कुल 11 करोड़ आदिवासी थे। इनमें 50 लाख से ज्यादा लोगों ने हिंदू के बजाय सरना को अपना धर्म बताया था। पिछले 11 सालों में इनकी संख्या और ज्यादा बढ़ी है।

संवैधानिक स्तर पर सरना को अलग धर्म का दर्जा दिलाने के लिए 30 नवंबर 2022 को झारखंड, बंगाल, बिहार, ओडिशा, असम में बंद का ऐलान किया गया था।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपील पर फिलहाल प्रोटेस्ट को टाल दिया गया है। भास्कर से बातचीत में पूर्व सांसद और सरना समुदाय के नेता सालखन मुर्मू ने यह जानकारी दी है। हालांकि, अलग-अलग राज्यों में इनके आंदोलन जारी हैं। इसी वजह से इस नए धर्म को लेकर चर्चा हो रही है।

सरना धर्म क्या है और इसे मानने वाले कौन हैं?


भारत में आदिवासी समुदाय का एक हिस्सा हिंदू नहीं बल्कि सरना धर्म को मानता है। इनके मुताबिक सरना वो लोग हैं जो प्रकृति की पूजा करते हैं। झारखंड में इस धर्म को मानने वालों की सबसे ज्यादा 42 लाख आबादी है।

ये लोग खुद को प्रकृति का पुजारी बताते हैं और मूर्ति पूजा में यकीन नहीं करते हैं। सरना धर्म से जुड़े आदिवासी सेंगेल अभियान संगठन के अध्यक्ष सालखन मुर्मू ने कहा कि इस धर्म को मानने वाले लोग 3 चीजों की पूजा करते हैं…

  1. धर्मेश यानी पिता
  2. सरना यानी मां
  3. प्रकृति यानी जंगल

सालखन मुर्मू ने कहा कि वह न तो मूर्ति पूजा और न ही वर्ण व्यवस्था, स्वर्ग-नरक आदि में विश्वास करते हैं, इसीलिए वे हिंदू धर्म से अलग हैं। हालांकि, वह मानते हैं कि कई सरना लोग शिव और दूसरे हिंदू देवताओं की पूजा करते हैं। जिन्हें वो फिर से अपने समुदाय में शामिल करने के लिए अभियान चला रहे हैं।

उनके मुताबिक सरना धर्म के लोग जल, जंगल, जमीन की रक्षा में विश्वास करते हुए पेड़ों और पहाड़ियों की पूजा करते हैं। इस धर्म के लोग सरहुल पर्व काफी धूम-धाम से मनाते हैं, इस दिन ही इनका नया साल शुरू होता है।

‘पृथ्वी पर सबसे पुराना धर्म है सरना’

सरना धर्म की शुरुआत और इसके ओरिजिन को लेकर रिसर्च और एक्सपर्ट के हवाले से हमें दो मुख्य जानकारी मिली-

सरना को मानने वाले धर्मगुरु बंधन तिग्गा ने एक इंटरव्यू में बताया कि पृथ्वी की संरचना के समय से अगर कोई सबसे पुराना धर्म है तो वो सरना धर्म है।
सरना धर्म के अधिकारों को लेकर लड़ाई लड़ने वाले सालखन मुर्मू ने कहा कि हम लोग प्रकृति के साथ जुड़े है। ऐसे में जिस दिन से धरती पर इंसान आए हैं, तब से ही हमारे सरना धर्म की भी शुरुआत हुई है।


सरना समुदाय के लोगों की सरकार से क्या मांग है?


सालखन मुर्मू ने कहा कि हमारी भारत सरकार से अभी सिर्फ एक मांग है कि सरना धर्म कोड को अगली जनगणना से पहले लागू किया जाए। ऐसा हुआ तो हमारी मुख्य समस्या खुद ही खत्म हो जाएगी।

उन्होंने कहा कि 50 लाख लोगों ने दर्जा नहीं मिलने के बावजूद सरना को अपना धर्म बताया है। सरना को धर्म का दर्जा मिला तो और ज्यादा आदिवासी लोग इस धर्म को अपनाएंगे। ऐसे में संविधान के आर्टिकल- 25 के तहत किसी भी धर्म को मानने के मौलिक अधिकार के तहत सरना धर्म कोड को मान्यता मिलनी चाहिए।

सरना को हिंदू या क्रिश्चयन से अलग धर्म का दर्जा क्यों मिलनी चाहिए?

रांची यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर रहे करमा ओरांव का कहना है कि सरना धर्म को मान्यता मिले, इसका एक ठोस तर्क तो इसे मानने वालों की संख्या है। उन्होंने कहा- 2011 की राष्ट्रीय जनगणना के मुताबिक सरना धर्म को मानने वालों की संख्या जैन धर्म को मानने वालों से भी ज्यादा है, इसलिए इसे भी धर्म का दर्जा मिलना चाहिए।
झारखंड मुक्ति मोर्चा पार्टी के विधायक दीपक बिरुआ ने बताया- ‘2016 में केंद्र सरकार ने कहा है कि आदिवासी समुदाय के लोग 6 में से किसी एक धर्म को चुन सकते हैं, अलग से कॉलम नहीं जोड़ा जाएगा। ऐसे में हमारी मांग है कि जब सरना हमारा धर्म है तो हम क्यों जबरदस्ती दूसरे धर्म को माने।’
पूर्व सांसद सालखन मुर्मू ने कहा है कि सरना को अलग धार्मिक समुदाय के रूप में मान्यता मिलने से उनकी भाषा और इतिहास को बेहतर सुरक्षा मिलेगी। आदिवासियों की धार्मिक पहचान बचाने के लिए भी ये जरूरी है।
उन्होंने कहा कि सुरक्षा के अभाव में सरना धर्म के लोग आरक्षण का लाभ लेने के लिए हिंदू या क्रिश्चयन धर्म को अपना लेते हैं, इसलिए भी हमारे धर्म को मान्यता मिलनी चाहिए।

1871 में आदिवासियों के लिए अलग धर्म कोड होता था


1871 में जब पहली बार देश में जनगणना हुई थी तो उस वक्त आदिवासियों के लिए अलग से धार्मिक कोड की व्यवस्था थी। 1951 की जनगणना में आदिवासियों को अलग धर्म की बजाय हिंदू धर्म की ही शेड्यूल ट्राइब्स यानी ST कहा जाने लगा।

इसके साथ ही जनगणना में धर्म को लेकर एक अलग से कैटेगरी अन्य की बनाई गई। 2011 की जनगणना में 79 लाख लोगों ने धर्म के कॉलम में अन्य भरा था।

भारत सरकार का सरना धर्म की मान्यता पर क्या तर्क है?


2020 में झारखंड विधानसभा ने सरना आदिवासी धर्म कोड प्रस्ताव पास किया। इसमें आदिवासियों को अलग धर्म का दर्जा देने की बात कही गई थी। इसे लागू करने के लिए केंद्र सरकार की हरी झंडी चाहिए थी, लेकिन केंद्र ने इस प्रस्ताव पर अनुमति नहीं दी।

आदिवासियों को हिंदू धर्म से अलग मानने और अलग धर्म कोड बनाने की मांग का तब केंद्रीय इस्पात राज्य मंत्री फगन सिंह कुलस्ते ने कहा था- ‘आदिवासी पहले सनातनी हिन्दू हैं। इनकी पूजा पद्धति और हिंदुओं की पूजा में कोई अंतर नहीं है। कुछ लोग आदिवासियों के लिए अलग धर्म कोड की मांग उठा रहे हैं। वे लोग धर्म और समाज को बांटने की कोशिश कर रहे हैं।’ इससे साफ होता है कि सरकार सरना को अलग धर्म का दर्जा देने के मूड में अभी नहीं है।

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