बुंदेली

बुंदेलखंड के प्रसिद्ध कवि /गजलकार महेश कटारे सुगम जी की रचनाएं पार्ट 1

बुंदेली ग़ज़ल
तुम जिन रानों सब जानत हैं
ठिया ,ठिकानों सब जानत हैं
बोली लग रई ,लीलामी पै
उठ रऔ थानों सब जानत हैं
गाँव ,शैर बरनी हैं, रैयत
बनीं अथानों सब जानत हैं
बीमारी में स्वाहा हो गऔ
गुरिया,गानों सब जानत हैं
सब कुड़मूता भये इखट्टे
तुम जिन मानों सब जानत हैं
एक छता की माछी, की खों
देत उरानों सब जानत हैं
अंधरा पीसें कुत्ता खावें
सुगम अहानों सब जानत हैं
रानों =बताना /बरनी =कांच का पात्र /अथानों =अचार /गुरिया गानों =ज़ेवर /कुडमूता =बदमाश /इखट्टे =इकट्ठे /मांछी =मक्खी /उराना =उलाहना /अहाना =कहावत /
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चारई तरफ खोद दई खाई ,का हुइयै
भीतर नच रये कैउ कसाई का हुइयै
पैल सुदेसी के लानें चिल्ल्यात हते
सौ पर्सेंट एफ.डी.आई का हुइयै
खावे पीवे की चीजन में आग लगी
मारें डारत है मंहगाई का हुइयै
चाल, चरित्र ,और चेहरा के वाचाली
फैला रये हैं खूब बुराई का हुइयै
कै रये हैं अब स्वच्छ प्रशासन आ गऔ है
करत वसूली और उगाई का हुइयै
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बुंदेली ग़ज़ल
हल्ला भऔ सो मक्कारन की निकर गयी मक्कारी हाँ
पूंछ दबा कें सबरे आ रये बड़े बड़े अधकारी हाँ
बिना रोंय सुध बुध नईं लेवै अम्मा दूध पियावे की
चिल्यावे सें हलौ महकमा पूरौ जौ सरकारी हाँ
बाबू नें रिशपत मांगी तौ जोर सें कई हम नईं देंहें
भीड़ जुरी सो बनौ बिलैया बाबू भिष्टाचारी हाँ
जब सें आ गऔ हमें बोलवौ उन नें सीकौ चुप रैवौ
सबई चैन सें होंन लगे हैं रुके काम सरकारी हाँ
इनें लूट्वे की आदत है हम लुटवे के भये आदी
फ़ैल गयी है ई कारन सें इत्ती जा बीमारी हाँ
चौकस रैवे की आदत अब सब खौं भौत ज़रूरी है
एक दिना अच्छी हो जैहै सबरी दुनियादारी हाँ
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बुंदेली ग़ज़ल
 सुख सें जीवें सबइ कमउआ बरिया वारे बब्बा
जनीं मान्स उर बब्बा बउआ बरिया वारे बब्बा
दूध दही की नदियां वैवैं ऐसी किरपा करियौ
भैसें बढ़ जावें दो ठउआ बरिया वारे बब्बा
कभऊँ कितऊँ ना सूखा परवै दुआ जेई मागत हैं
बेर फरें उर टपकें महुआ बरिया वारे बब्बा
मुखिया की ठठरी बंध जावै ऊ पै परै भुमानी
जल्दी जौ मिट जावै हउआ बरिया वारे बब्बा
आग लगै सबरौ बर जावै जौ दारू कौ ठेका
होंय बंद सब अद्धी प्उआ बरिया वारे बब्बा
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बुंदेली ग़ज़ल
बातें सब बेमानी नईयां
पीवे तक खौं पानी नईयां
माया जाल भूख कौ फैलौ
कौनऊँ और कहानी नईयां
जब तक रैहै रांड़ गरीबी
जीवे में आसानी नईयां
मुश्कल काम जबई तक समझौ
जब तक मन में ठानी नईयां
बंगलन खौं बातें आ रईं हैं
हम पै छप्पर छानी नईयां
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 बुंदेली ग़ज़ल
मैं चिरवा तुम एक चिरैया
चंदा मैं तुम बनी जुनैया
हम तुम बंधे एक गिरमा सें
मैं खूंटा और तुम हौ गैया
हम खुशीयन के नाज घाईं हैं
पिसी भरी तुम लगत कुरैया
घी सें भरी ज़िंदगी अपनी
मैं झारौ तुम एक करैया
हम तुम ग्रस्ती की गाडी के
बने ढडक राई हैं दो पइया
हम तुम सें संसार बनौ है
सुगम हमईं संसार रचैया
जुनैया =चांदनी /गिरमा =रस्सी /नाज =अनाज /घाईं =जैसे /पिसी =गेहूं /कुरैया =५सेर नापने का बर्तन /ढड़क =लुढ़कना /पइया =पहिया /रचैया =बनाने वाले /
महेश कटारे सुगम
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