बुंदेली

प्रदूषण पे कविप्रताप की सुन्दर बुंदेली रचनाएँ (कविता )

प्रदूषण (कवि प्रताप )
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गाड़ी घोड़ा घर-घर चानें,
सब घर भर के लानें।
मचौ प्रदूषण दुनियां भर में,
रोगी डरे दिखानें।
आसमान पिट्रोल औ डीजल,
खाली करै खजानें।
मानत नैंयां शान के मारे,
थोंदें लगे फुलानें।
कयें प्रताप चेत अब जल्दी,
सांसें ना लै पानें।

बोलचाल सुधारौ
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ऐसी बानी कभौं न बोलौ,
दुखै जिया अनमोलौ।
बुरे बचन की हाय बुरी है,
भोगें लोग झमेलौ।
बात सुनौ समझौ दूजे की,
अपनी ना तुम ठेलौ।
मीठे बोलौ काम करालो,
दुआ लेव दिल खोलौ।
बोल प्रताप दिलों की चाबी,

बन्द करौ या खोलौ।

गाड़ी की मांग
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गाड़ी मांगें लरका बाले,
पिट्रोलन के लाले।
शान समझबें गाड़ी लैकें,
बेमतलब बेठाले।
हाथी बांदें चरबे नयियां,
गाय भेंस ना पाले।
घर में ठांड़ी जांगा घेरें,
चलबै जेब झराले।
चलौ प्रताप पांव सें अपनें,

स्वस्थ्य शरीर बनाले।

बुंदेलखण्ड
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गोरन मुगलन धूरा चाटी,
बीरन की जा माटी।
ऊंची नैची पर्वत श्रेणी,
कहूं खेत कौं घाटी।
छत्रसाल से बीर बुंदेला,
मुगलन नाकें काटी।
रानी लक्ष्मी स्वतंत्रता की,
बना गयीं परपाटी।
बुंदेल राज प्रताप बनाऔ,

नाटी हुयै न खाटी।

प्रदूषित पानी
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बिगरौ सब जांगा कौ पानी,
सबकी जेई कहानी।
नदियां तला हेंड पंपन कौ,
भयौ प्रदूषित पानी।
पानी भरत वहीं पै कचरा,
फेंकें कर मनमानी।
नाले डारे नदियन तालन,
बसें घाट जिद ठानी।
ढोर ,साग,फल बयी पानी के,
खाबें सबरे प्रानी।
सुधर प्रताप जाऔ तुम जल्दी,

पी पैहौ ना पानी।

पहाड़ों को मिटाना
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क्रेसर पीसत जातपहारन ,
जंगल लगे बिगारन।
धुंध उठी छायी फसलन पै,
मानुष मरे हजारन।
मानसून के रोकनबारे,
गड्डा बनगय खारन ।
बेंच प्रताप बुंदेली धरनीं,

काटें पांव कुलारन।
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