उत्तर प्रदेश

राहुल और रायबरेली की सियासत पर मचा बवाल, आसान नहीं है मां सोनिया गांधी की विरासत को संभालना

  • कांग्रेस नेता राहुल गाँधी को है मां की विरासत बचाने की चुनौती
  • गांधी परिवार की पुरानी सीट रही है रायबरेली, इस बार दिख रही है कड़ी टक्कर
  • बीजेपी के 400 पार के नारे के बीच क्या राहुल गाँधी बचा रायबरेली सीट , क्या राहुल गाँधी ने बना लिया है जीत का मास्टर प्लान

रायबरेली/डेस्क: कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी को लेकर लंबे समय से चला आ रहा सियासी सस्पेंस अब खत्म हो गया है. राहुल गांधी ने गांधी परिवार की पारंपरिक सीट रायबरेली से अपना नामांकन पत्र दाखिल कर दिया है. केरल की वायनाड सीट से दो बार चुनाव लड़ रहे वायनाड से राहुल गांधी सांसद हैं और अब यहां दूसरे चरण में चुनाव हो चुका है राहुल गांधी रायबरेली से भी चुनावी ताल ठोक रहे हैं. उनका मुकाबला भारतीय जनता पार्टी-बीजेपी के दिनेश प्रताप सिंह और बहुजन समाज पार्टी-बीएसपी के ठाकुर प्रसाद यादव से होगा. हालांकि यहां से अभी तक 24 लोगों ने अपना नामांकन दाखिल किया है. यूपी में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी में गठबंधन हैं, इसलिए उनका मुकाबला सीधे-सीधे बसपा और बीजेपी से है.

रायबरेली देश की हॉट लोकसभा सीटों में शामिल हैं. चूंकि यह गांधी परिवार की पुरानी सीट रही है, इसलिए राहुल गांंधी के नामांकन के दौरान एक प्रकार से कांग्रेस का शक्ति प्रदर्शन भी देखने को मिला. राहुल के साथ उनकी मां सोनिया गांधी, बहन प्रियंका गांधी, बहनोई राबर्ट वाड्रा, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, अशोक गहलोत, तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी समेत कांग्रेस के कई दिग्गज नेता और बड़ी संख्या में कार्यकर्ता दिखाई दिए. राहुल गांधी के नामांकन में भले ही कांग्रेस का शक्ति प्रदर्शन दिखलाई दिया हो, लेकिन उनके आगे अपनी मां सोनिया गांधी की राजनीतिक विरासत को संभालना आसान नहीं होगा. क्योंकि राहुल का मुकाबला पुराने कांग्रेसी दिनेश प्रताप सिंह से हो रहा है.

दिनेश प्रताप सिंह वर्तमान में योगी सरकार में मंत्री हैं. 2019 से पहले वे कांग्रेसी हुआ करते थे. दिनेश प्रताप सिंह पूर्व में उत्तर प्रदेश विधान परिषद के सदस्य रह चुके हैं. वे 2010 से 2016 और 2016 से 2022 तक एमएलसी रहे. 2018 में वे कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गए. तीसरी बार वे फिर से जीते और योगी सरकार में मंत्री बने. 2019 के लोकसभा चुनाव में दिनेश प्रताप सिंह रायबरेली सीट से सोनिया गांधी के खिलाफ बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़े थे. और इस चुनाव में सोनिया गांधी को 5.34 लाख वोट मिले थे, जबकि दिनेश प्रताप सिंह को 3.67 लाख वोट. यह सोनिया गांधी की रायबरेली में अब तक की सबसे कम अंतर की जीत थी.

इसके अलावा रायबरेली में दिनेश प्रताप सिंह के समर्थन में समाजवादी पार्टी के बागी विधायक मनोज पांडे भी आ गए हैं. इससे बीजेपी का पक्ष और ज्यादा मजबूत हो गया है. क्योंकि रायबरेली लोकसभा सीट भले ही गांधी परिवार की हो, लेकिन यहां विधानसभा सीटों पर समाजवादी पार्टी का डंका बजता है. पांच में चार विधानसभा सीटों पर समाजवादी पार्टी के विधायक हैं. हालांकि, यह भी याद रखना होगा कि रायबरेली सीट गांधी परिवार की पारंपरिक सीट रही है. यहां के लोगों का गांधी परिवार से खास लगाव है. लेकिन ये भी सच ही गांधी परिवार की ही एक और पारंपरिक सीट अमेठी लोकसभा सीट पर पिछले चुनावों में बीजेपी की स्मृति ईरानी ने सेंध लगाकर कब्जा कर लिया था. जिस प्रकार पूरे देश में कांग्रेस का गढ़ लगभग ढहता जा रहा है, उस हिसाब से रायबरेली की जनता भी अमेठी की तरह की उलटफेर कर दे, कहा नहीं जा सकता. इसके अलावा खुद सोनिया गांधी इस बार रायबरेली सीट छोड़कर राजस्थान से राज्यसभा की सीट पर संसद पहुंच गई हैं. यह भी एक प्रकार से रायबरेली की जनता को सोनिया गांधी का बीच में छोड़ना ही हुआ. इसका असर भी चुनावों में दिखाई दे सकता है.

रायबरेली लोकसभा सीट पर 5वें चरण में 20 मई को मतदान होगा. इस सीट पर कुल 21 लाख, 45 हजार, 820 मतदाता हैं. इनमें पुरुष मतदाताओं की संख्या 11.20 लाख और महिला वोटरों की संख्या 10.25 लाख है. रायबरेली लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र में पांच विधान सभा सीट बछरावां, हरचंदपुर, रायबरेली, सरेनी और ऊंचाहार शामिल हैं. इनमें से रायबरेली सीट से बीजेपी की अदिति सिंह विधायक हैं, बाकि 4 पर समाजवादी पार्टी का कब्जा है. मनोज पांडे ऊंचाहार विधानसभा सीट से विधायक हैं.

रायबरेली लोकसभा सीट गठन 1952 में हुआ था. 1952 और 1957 के चुनाव में यहां से फिरोज गांधी विजयी हुए थे. 1960 में कांग्रेस के ही आरपी सिंह और 1962 के उपचुनाव में बैजनाथ कुरील चुनाव जीते थे. 1967 और 1971 के चुनाव में इंदिरा गांधी यहां से सांसद चुनी गईं. 1977 में यह सीट जनता पार्टी के राज नारायण के पास आ गई. 1980 में एकबार फिर इंदिरा गांधी ने यहां से चुनाव जीता. 1980 (उपचुनाव) और 1984 में अरुण नेहरू यहां से सांसद चुने गए. उनके बाद 1989 और 1991 में इंदिरा गांधी की मामी शीला कौल विजयी हुईं. 1996 में रायबरेली की राजनीति ने फिर से करवट बदली और बीजेपी के अशोक सिंह सांसद बने. 1998 में भी यह सीट बीजेपी के पास रही. 1999 में यह सीट फिर से कांग्रेस के पाले में आ गई और सतीश शर्मा चुनाव जीते. 2004 से अब तक सोनिया गांधी यहां से लगातार चुनाव जीत रही हैं.

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