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इस खूंखार राजनीति से मध्य प्रदेश को बचा लो कोई

इस खूंखार राजनीति से प्रदेश को बचा लो कोई
सचिन चौधरी (बुंदली बौछार )
मध्य प्रदेश के स्थापना दिवस की बहुत बधाई आपको
साल 2009 में 1 जनवरी को मध्य प्रदेश आया। राजधानी भोपाल को अपना ठिकाना बनाया।बेहतर शांति ,राजनैतिक सद्भाव जो यहां देखा तो हम यूपी वालों के लिए तो ये स्वर्ग जैसा था। एक दूसरे को सहयोग करते लोग , राजनैतिक दल तो मानो सिर्फ हर परीक्षा के परीक्षार्थी की तरह चुनाव में प्रतिस्पर्धा रखते और मत गणना स्थल पर ही सब साथ बैठकर चाय नाश्ता करते। कार्यकर्त्ता हों या नेता, सबके बीच प्रतिस्पर्धा तो थी लेकिन दुश्मनी कभी न थी। यहां तक कि 2003 में जिन दिग्विजय सिंह को उमा भारती ने बुरी तरह हराकर सत्ता से बाहर किया , उन्ही दिग्विजय को उमा भारती अपना बड़ा भाई कहती थीं।
हमारे लिए तो यह सब अचरज सा था। लेकिन बीते सालों में सब कुछ बदल गया। विशेष तौर पर मध्य प्रदेश में 2018 विधानसभा चुनाव के आसपास से ही। प्रदेश की राजनीति बीते दो साल में खूंखार हो चली है। इसमें अब षड्यंत्र भीं हैं , चालें भी हैं , खूनखराबा भी है और दोगलापन भी है।
ऐसा शायद इसलिए है क्यूंकि बीते लगभग 25 बरस बाद मुकाबला बराबरी का है। 1993 में दिग्विजय सिंह के मुख्यमंत्री बनने के बाद से 2018 में ही कांटे का मुकाबला दिखाई दिया। इसी मुकाबले में मिली हार को भाजपा बर्दाश्त न कर पाई और इसी मुकाबले में मिली जीत को कांग्रेस पचा न पाई। नवम्बर 2018 के बाद से ही भाजपा ,सत्ता खोने से पगलाई तो कांग्रेस सत्ता मिलने से पगलाई। यही पागलपन सत्ता गिरने गिराने के खेल तक पहुंचा और एक बार फिर उसी स्तर तक आया है। जब उपचुनाव में भाजपा सत्ता बचाने के लिए मर्यादा की सीमा और रेखा दोनों को भूल चुकी है और कांग्रेस बेचैनी की हदों को पार कर चुकी है।
विभीषण से चले सिंधिया टाइगर ,कौवा- कुत्ता तक आ पहुंचे , जैकलीन से चले कमलनाथ आइटम तक आ पहुंचे, विकास का दम्भा भरने वाले शिवराज खुद को भूखा नंगा कहे जाने की मुहिम चला बैठे और चुन्नू मुन्नू , रखैल, बंगाली बाबा जैसे विशेषणों से सुसज्जित इस चुनाव को कलंकित करने वाले तो सैकड़ों चेहरे हैं ही।
लेकिन अब मध्य प्रदेश की समस्या ,राजनेताओं का यह चरित्र नहीं है। बल्कि अपने अपने नेताओं की इन बातों से सोशल मीडिया के दौर में प्रभावित होता कार्यकर्त्ता है। जो यह नहीं जानता समझता कि नेता तो आज नहीं तो कल अपने स्वार्थ के लिए दल भी बदल लेंगे और दिल भी , लेकिन वह तो दूसरे दल के कार्यकर्ताओं पर , थोड़ी सी भी विपरीत विचारधारा पर टिड्डी दल की तरह टूट पड़ता है। ऐसा टिड्डी दल जो आखिर में इस प्रदेश की फसल को नहीं बल्कि सादगी वाली नस्ल को चांट कर साफ़ करने पर उतारू है।
अभी उपचुनाव का मतदान और उसके बाद परिणाम शेष है। हमारे मन की आशंकाएं इस माहौल को निम्नतम स्तर तक गंदा होने की ओर आशंकित कर रही हैं।
हालांकि जहर भरे माहौल में दो बूंद अमृत की तलाशना बेमानी है। लेकिन कुछ कहना है इस प्रदेश के तथाकथित कर्णधारों से।
10 नवम्बर या उसके कुछ दिन बाद , या तो आप सत्ता बचा लोगे या फिर खोई सत्ता पा लोगे। लेकिन सत्ता बचाने वालो , हो सके तो प्रदेश की विरासत को बचा लेना, या सत्ता पाने वालो हो सके तो प्रदेश का खोया हुआ परस्पर सौहार्द का माहौल वापस पाने का प्रयास जरूर करना।
हालांकि मेरा यह ख्वाब लगभग असंभव है ,लेकिन आशा से आसमान टिका है और अपन बहुत आशावादी हैं
एक बार फिर मध्य प्रदेश को स्थापना दिवस की हार्दिक शुभकामनायें , और बीते 12 वर्षों से मुझे आश्रय एवं रोजगार देने के लिए प्रदेश का धन्यवाद
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