‘येन बद्धो बलि राजा, दानवेन्द्रो महाबल: तेन त्वाम् प्रतिबद्धनामि रक्षे माचल माचल:।
धर्मशास्त्र के विद्वानों के अनुसार इसका अर्थ यह है कि रक्षा सूत्र बांधते समय ब्राह्मण या पुरोहत अपने यजमान को कहता है कि जिस रक्षासूत्र से दानवों के महापराक्रमी राजा बलि धर्म के बंधन में बांधे गए थे अर्थात् धर्म में प्रयुक्त किए गये थे, उसी सूत्र से मैं तुम्हें बांधता हूं, यानी धर्म के लिए प्रतिबद्ध करता हूं।
कालान्तर में रक्षाबंधन का पर्व बहन भाई के स्नेहबंधन के पर्व के रूप में सीमित हो गया है। जब इस मंत्र का उच्चारण करते हुए बहिन अपने भाई की कलाई पर रक्षा सूत्र बाँधती है तो अनकहे ही उसकी तमाम इच्छाएं आकांक्षाएं उस रक्षा सूत्र से होतीं हुई भाई के अंतर्मन को छू जाती हैं। भाई बहिन के बीच अगाध स्नेह और विश्वास का प्रतीक पतला सा धागा सुरक्षा की अभेद्य दीवार बनकर बहन की रक्षा के कर्तव्य निर्वहन हेतु भाई को सदा प्रेरित और जागृत करता रहता है। रक्षा सूत्र बँधवाने के बाद भाई अपनी बहन को हर परिस्थिति में उसकी रक्षा करने का वचन देता है और सामर्थ्यानुसार उपहार देता है।
रक्षाबंधन के पवित्र त्यौहार पर भाई-बहन के इसी अगाध स्नेह और प्यार का उदाहरण फिर देखने को मिला जब छत्तीसगढ़ में एक नक्सली भाई ने बहन की मनुहार के सामने घुटने टेक दिए और आतंक की राह छोड़कर आत्मसमर्पण कर दिया। 22 साल का मल्ला जब मात्र 10 साल का था तभी उसका चाचा उसे घर से ले गया था और उसे नक्सल आंदोलन में शामिल कर उसके नन्हे हाथों में खतरनाक हथियार थमा दिए थे। आतंक की राह पर चलता मल्ला इन बारह सालों में 8 लाख का इनामी हार्डकोर नक्सली बन चुका था और नक्सल प्रभावित क्षेत्र में उसकी तूती बोलती थी लेकिन मल्ला की बहिन लिंगे इससे बहुत आहत थी और बराबर यही सोचती रहती थी कि कैसे अपने भाई को गलत राह से वापस लाये। इस रक्षाबंधन को जब मल्ला अपनी बहन से राखी बँधवाने घर आया तो बहन ने राखी बांधने से इनकार कर दिया और शर्त रखी कि वह राखी तभी बाँधेगी जब वह नक्सल की राह छोड़कर आत्मसमर्पण कर देगा, बहुत मनाने के बाद आखिर बहन के प्यार के आगे मल्ला को झुकना पड़ा और उसने पुलिस के आगे आत्मसमर्पण कर दिया, बहन लिंगे ने भी खुश होकर थाने में ही भाई को राखी बाँधी और ईश्वर से उसकी लम्बी आयु की कामना की।
इसी तरह की एक अन्य घटना में 5 लाख की इनामी नक्सली दशमी जिसने करीब 20 दिन पहले जगदलपुर में सरेंडर किया था, उसने भी अपने भाई लक्ष्मण से अपील की है कि वह भी सरेंडर कर दे। दशमी ने कहा कि शादी के 6 महीने बाद ही उसके पति वर्गीस एनकाउंटर में मारे गए। अब भाई को नहीं खोना चाहती, वह माचकोट में कमांडर है। दशमी ने बताया कि वह 2011 में और भाई 2016 में नक्सल संगठन में शामिल हुआ था।
भाई भी बहनों को सरेंडर के लिए कह रहे-
मार्च में सुकमा पुलिस के सामने सरेंडर करने वाले बादल ने कहा कि मेरी इकलौती बहन जोगी कड़तामी एसीएम है। वह नक्सल लीडर देवा के साथ काम कर रही है। उसे कहूंगा कि रक्षाबंधन के समय सरेंडर करके वह भी मुख्यधारा में शामिल हो जाए। मिलकर राखी मनाएंगे। जोगी 2014 में नक्सल संगठन में शामिल हुई थी। इन दिनों पुलिस भी लोन वर्राटू के नाम से अभियान चला रही है, जिसमें भटके हुए नक्सलियों को वापस मुख्यधारा में लाया जा रहा है।
राजीव बिरथरे की रिपोर्ट
सुपर आलेख लिखा है