वात्सल्य और रक्षा का पर्व है रक्षाबंधन : मुनिश्री
ललितपुर: परम पूज्य श्रमणाचार्य श्री 108 विशुद्ध सागर महाराज के परम प्रभावक शिष्य श्रमणरत्न मुनिश्री 108 सुप्रभ सागरजी महाराज ने गौशाला मसौरा में रक्षाबंधन के पर्व पर सुप्रभ उवाच ऑनलाइन प्रवचन और ऑनलाइन सम्यक समाधान में कहा कि रक्षाबन्धन का पर्व भारतीय संस्कृति का एक प्रमुख पर्व है। इस पर्व से सम्बन्धित अनेक कहानियाँ प्रसिद्ध हैं। भारत के लगभग सभी धर्मों में यह पर्व अत्यंत आस्था और उत्साह के साथ मनाया जाता है। जैन धर्म में यह त्योहार मात्र सामाजिक ही नहीं वरन आध्यात्मिक भी है। इस त्योहार का सम्बन्ध सिर्फ गृहस्थ से ही नहीं मुनियों से भी है। रक्षाबंधन पर्व का मुख्य महत्व तभी है जब हम इस अवसर पर अपने धर्म, धर्मायतनों तथा मुनिराजों, आर्यिका माताजी आदि साधुओं, राष्ट्र, पर्यावरण की रक्षा हेतु विचार करें व उनकी सेवा तथा रक्षा हेतु संकल्पित हों। ऑनलाइन के माध्यम से मुनिश्री ने जन-जन से अपने संदेश में कहा कि यह रक्षाबंधन पर्व मात्र भाई के द्वारा बहिन की रक्षा का पर्व नहीं है अपितु धर्म-धर्मात्मा चाहे वह मां, बेटा, भाई, पति-पत्नी कोई भी हो सभी के प्रति वात्सल्य एवं प्राणीमात्र की रक्षा का पर्व है। उन्होंने कहा कि एक साधर्मी का दूसरे साधर्मी से और साधु से वात्सल्य की डोरी से बंध जाना ही वास्तविक बंधन है और जहाँ वात्सल्य भाव होता है वहीं रक्षा के भाव होना संभव हैं। अत: रक्षाबंधन पर्व वास्तविक में वात्सल्य पर्व ही है। जैन परंपरा में भी है रक्षाबंधन का अत्यधिक महत्व: हस्तिनापुंर में बलि आदि मंत्रियों ने कपट पूर्वक राज्य ग्रहण कर अकम्पनाचार्य सहित 700 जैन मुनियों पर घोर उपर्सग किया था, जिसे विष्णुकुमार मुनि ने दूर किया था। यह दिन श्रवण नक्षत्र, श्रावण मास की पूर्णिमा का था, जिस दिन अकम्पनाचार्य आदि 700 मुनियों की रक्षा विष्णुकुमार द्वारा हुई। विघ्न दूर होते ही प्रजा ने खुशियां मनाई, श्री मुनिसंघ को स्वास्थ्य के अनुकूल आहार दिया, वैयावृत्ति की, तभी से जैन परंपरा में रक्षाबंधन मनाया जाता है। रक्षाबंधन के दिन जैन मंदिरों में श्रावक-श्राविकायें जाकर धर्म और संस्कृति की रक्षा के संकल्प पूर्वक रक्षासूत्र बांधते हैं और रक्षाबंधन पूजन करते हैं। मुनि श्री प्रणत सागर जी ने बताया कि यह पर्व परिवार, समाज, देश और विश्व के प्रति अपने कर्तव्यों के प्रति हमारी जागरूकता भी बढ़ाता है।