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मोहन्द्रा: जिंदा हो या मुर्दा, सरकारी काम काज से हर कोई परेशान

मोहंद्रा- कागज जिंदा आदमी के बनाए जाने हो या मुर्दा आदमी के सरकारी कार्यालयों में चक्कर काटने से हर कोई परेशान है। अज्ञानता के अभाव में समय से जो लोग आवेदन नहीं कर पाते उनकी तो पूछिए ही मत। पंच से लेकर से लेकर आंगनवाड़ी कार्यकर्ता तक, पंचायत के सरपंच-सचिव से लेकर सहायक सचिव तक जिसे अपने गांव के अंदर के बाशिन्दों की जन्म से लेकर मृत्यु तक की जानकारी होनी चाहिए। जिनके कंधों में यह जिम्मेदारी सौंपी गई है कि कागजों के अभाव में कोई ग्रामीण किसी महत्वपूर्ण सरकारी योजना के लाभ से वंचित ना होने पाए। वह अपने कर्तव्य से पल्ला झाड़ लेते हैं। नतीजा यह निकलता है कि आदमी अपनी फरियाद लिए ऑफिस ऑफिस भटकता रहता है।
केस क्रमांक 01- कस्बे के अंदर रहने वाली हल्की बाई चौरसिया के पति की मौत लगभग 20 साल पहले हुई थी। उनके पति वन विभाग में कर्मचारी थे। भरण पोषण के लिए शासन से हर माह ₹6000 पेंशन मिलती है। कुछ दिनों पूर्व आयुष्मान कार्ड बनवाने एक सीएससी गई। वहां जब उनकी समग्र आईडी खोली गई तो इन्हें पता चला कि पंचायत के कर्मचारियों ने उन्हें मृत घोषित कर रखा है। महिला को डर सता रहा है कि कहीं यह जानकारी ऊपर चली गई होगी तो जो इन्हें पेंशन मिलती थी वह भी बंद हो जाएगी। अब यह महिला चला मुसद्दी ऑफिस ऑफिस फिल्म की तरह अपने जिंदा होने के कागज ऑफिस ऑफिस देते फिर रही है।
केस क्रमांक 02- कस्बे के आदिवासी मोहल्ले में रहने वाली रमिया आदिवासी के पति की मौत सितंबर 2020 में हो गई थी। महिला के पास जॉब कार्ड गरीबी रेखा के राशन कार्ड सहित संबल कार्ड भी मौजूद है, पर उसे किसी सरकारी योजना का लाभ नहीं मिला क्योंकि पंचायत द्वारा निर्धारित 21 दिन के अंदर अपने पति की मौत का मृत्यु प्रमाण पत्र पंचायत से नहीं बनवा पाई। महिला का कहना है कि उसने सूचना आंगनवाड़ी कार्यालय को दे दी थी। मृत्यु प्रमाण पत्र के लिए समय से आवेदन नहीं कर पाने का नतीजा यह निकला कि जिस महिला को विधवा पेंशन मिलने की शुरुआत सितंबर-अक्टूबर महीने से ही हो जानी चाहिए थी वह आज तक नहीं हुई।

✍️आकाश बहरे

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