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ललितपुरः विश्व पृथ्वी दिवस/विशेष

धरती माता सबका पेट भर सकती है, पर अंतहीन लोभ-लालच का नहीं
ललितपुर। विश्व पृथ्वी दिवस पर आयोजित परिचर्चा को संबोधित करते हुए नेहरू महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य प्रो. भगवत नारायण शर्मा ने कहा कि सूर्य का चक्कर लगा रहे नौ ग्रहों में से पृथ्वी ही एक ऐसा ग्रह है, जिस पर जीवन मौजूद है। पृथ्वी बहुत विशाल है पर ब्रह्माण्ड की तुलना में वसुधैव कुटुम्बकम, एक छोटा सा कुटुम्ब ही है। धरती के बहुत ही पतले आवरण जिसे जीवमंडल कहा जाता है, पर जीवन मौजूद है। सूर्य ही ऊर्जा का एकमात्र स्रोत है, जिससे विविध जैवस्वरूपों में सतत परस्पर क्रिया होती रहती है। इस सिलसिले को परिरक्षित, संरक्षित और सुरक्षित रखना आज की सबसे बड़ी समस्या है। इसी उद्देश्य से संयुक्त राष्ट्र संघ के आवाहन पर विश्व पृथ्वी दिवस संकल्पपूर्वक मनाया जाता है। हमारे वैदिक रिषियों की दृष्टि बड़ी व्यापक और विशाल थी। इसलिए उन्होंने पृथ्वी सूक्त लिखे तथा विश्वम भवति एकनीड़म यानि सारा संसार एक घोंसला है, जिसमें समस्त जड़-चेतन को अपना निर्वाहशील जीवन जीना है। परन्तु हममें से प्रत्येक को सारी पृथ्वी चाहिए, यह निर्विवाद सत्य है। परन्तु यह भी सत्य है कि पृथ्वी को भी प्रत्येक मनुष्य की सेवा की आवश्यकता है। किन्तु हर चीज पर अपना स्वामित्व रहे इस भावना ने जीवन को संजटिल और कुटिल बनाकर सम्पूर्णता को खण्डित कर दिया जिसके काण हम त्यागमय उपभोग के स्थान पर नैपकिन की तरह यूज एण्ड थ्रो तथा सादा जीवन और उच्च विचार नहीं और मनमाने अनियंत्रित भोग को ही सब कुछ समझ बैठे। अतीत में भारत ने संसार को दशमलव प्रणाली देकर वर्तमान कम्प्यूटर को आधार प्रदान करके धरती से लेकर चन्द्रमा तक की दूरी को गज फुट इंच में घोषित कर दिया है। अमेरिका के महान नॉबेल पुरुस्कार विजेता डा.वोरलॉग सन 1960 के दौरान भारत की अन्न समस्या के समाधान हेतु पंतनगर के कृषि विश्वविद्यालय में साल में कई बार आते जाते रहे। उन्होंने हजारों गमलों में अमेरिका के रोग प्रतिरोधी मेक्सिकन गेहूँ और पंजाब के पोष्टिक गेहूँ को बोकर ऐसी संकर नस्ल विकसित की जिससे देश में हरित क्रान्ति का द्वार खोल दिया और देश आयात की जगह गेहूँ का निर्यात करने लगा। इसी प्रकार ललितपुर में जन्मे तथा सम्प्रति चन्द्रशेखर कृषि विश्वविद्यालय कानपुर के कुलपति विग्यानवेत्ता, मेरे आत्मीय डॉ सोलोमन को भारत सरकार ने तत्समय क्यूबा तदुपरान्त चीन में भेजा, जहाँ अपने प्रवास के समय उन्होंने गन्ने की ऐसी संकर नस्ल तैयार की कि जिसकी बदौलत आज सारी दुनिया के किसानों के लिए आर्थिक रूप से गन्ना उत्पादन पहली बार लाभकारी खेती के रूप में बदल गया। बायोलॉजिकल एवं रासायनिक अस्त्रों के निर्माण और संचय पर कारगर प्रतिबन्ध विश्व के ऐजेन्डे की शीर्ष प्राथमिकता है ।अंततरू विश्व जनमत के आगे बड़ी से बड़ी शक्तियों को भी झुकना पड़ेगा । कैसी बिडम्बना है कि व्यक्तिगत स्वामित्व दिन दूना रात चौगुना बढ़ाते रहने की गलाकाट होड़ ने मु-ी भर लोगों को इतना पागल बना दिया है कि धरती जैसी समग्र विरासत की रक्षा में हम तभी सन्नद्ध होते हैं , जब हम उस पर निजी स्वामित्त चाहते हैं। धरतीपुत्र साईन्टिस्ट और टेक्नोक्रेट प्रतिभायें , प्रसन्नता की बात है कि राजनीतिक संकीर्णता के भूगोल को नहीं मानती, मनुष्य न तो आजतक हारा है और न आगे हारेगा ,क्योंकि नवीनता ही सदा जीतती आयी है। विग्यान सत्य का ही पर्याय है, सत्यमेव जयते के अखण्ड विश्वास को कभी हिलने न दें।

✍️अमित लखेरा

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