ललितपुर। महान साहित्यस्रष्टा तथा हिन्दी पत्रकारिता के तपते सूर्य गणेश शंकर विद्यार्थी के बलिदान दिवस पर आयोजित परिचर्चा को संबोधित करते हुए नेहरू महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य प्रो. भगवत नारायण शर्मा ने कहा कि उनके शब्द गुलामी के गाल पर झन्नाटेदार तमाचे की तरह पड़ते थे। विरासत में तिलक और गांधी से मिली अन्याय और असत्य के विरुद्ध आग बरसाने वाली पत्रकारिता की मसाल लेकर चलने वाले विद्यार्थीजी की जोशीली ललकार सर्वत्र दिखाई देती है। यहां तक कि अपने प्रताप अखबार में सह संपादक की नौकरी चाहने वालों के लिए अपने रिक्ति विज्ञापन का प्रारूप भी वे इस तरह छापते हैं। दो वक्त का भोजन। साल के दो कुर्ते। दो धोतियां तथा सदा एक पैर जेल में रहने की स्थिति जिसे मंजूर हो, आवेदन करे। उक्त विज्ञापन को पढ़ कर सरदार भगतसिंह और चन्द्रशेखर आजाद ने अपनी दरख्वास्त लगाई और सहर्ष उनका चयन कर लिया गया। अखबार का दफ्तर क्रान्तिकारियों के लिए भारत माता मंदिर तीर्थ बन गया। विद्यार्थीजी की शहादत पर स्वाधीनता संग्राम के महानायक गांधीजी ने कहा था, ऐसा सौभाग्य मैं चाहता हूँ। मुझे इस बहादुर सपूत से इसीलिए ईष्या हो रही है। समाचार पत्र का लक्ष्य अन्याय के साम्राज्य से छुटकारा दिलाना है। प्रत्येक मनुष्य जो लाचारी की जंजीरों में जकड़ा हुआ है, उसे तोड़ फेकनें की झनझनाहट अखबारों के स्तम्भों के शब्दों से सुनाई देती रहना चाहिए।