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ललितपुरः सामुदायिक रेडियो कर रहा किसानो को जलवायु परिवर्तन पर जागरूक

ललितपुर। सामुदायिक रेडियो स्टेशन ललित लोकवाणी द्वारा विभिन्न मुद्दों पर कार्यक्रमों को तैयार करके समुदाय को जागरूक करने का कार्य किया जा रहा है। इसी क्रम में जलवायु परिवर्तन पर रेडियो द्वारा विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से समझ विकसित करने का प्रयास किया जा रहा है। सामुदायिक रेडियो स्टेशन ललित लोकवाणी के स्टेशन मेनैजर पंकज तिवारी से इस सम्बन्ध में जानकारी की गई तो उन्होंने बताया कि उनके रेडियो का मुख्य उद्देश्य समुदाय को उनकी ही सरल भाषा में अपनी बात पहुँचने का है। स्टेशन मेनैजर पंकज तिवारी ने बताया कि जलवायु परिवर्तन न केवल लोगों के स्वास्थ्य पर सीधा असर डाल रहा हैं, बल्कि खेतों में पैदा हो रही फसलें भी इनसे प्रभावित हैं। किसान कई पीढिय़ों से खेती के लिए मौसमी बरसात पर ही निर्भर रहे हैं लेकिन अब बदलते मौसम के कारण उन्हें नुकसान हो रहा है। देश में फसल उत्पादन में उतार-चढ़ाव का कारण कम वर्षा, अत्यधिक वर्षा, अत्यधिक नमी, फसलों पर कीड़े लगना, बेमौसम बारिश, बाढ़ व सूखा और ओलों की बौछार आदि मुख्य हैं। उन्होंने बदलते मौसम पर चर्चा करते हुए कहा कि पिछले कुछ सालों से मौसम चक्र ने चौंकाने और परेशान करने का जो सिलसिला शुरू किया है वो खेती के लिए मुसीबत बन गया हैं। आज देश में नियमित बाढ़, चक्रवात और सूखे जैसी प्राकृतिक आपदाओं की बढ़ती आवृति से स्पष्ट हो जाता कि भारत जलवायु परिवर्तन से सर्वाधिक प्रभावित देशों में से एक है। खेती में समग्रता किसान को आत्मनिर्भर बनाती है, बाजार पर उसकी निर्भरता कम होती है तथा कठिन समय में भी उसकी खाद्य सुरक्षा बनी रहती है क्योंकि एक या दो गतिविधियों के नुकसान से पूरी प्रक्रिया नष्ट नहीं होती। जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों पर चर्चा करते हुए कहा कि इससे भारतीय कृषि को बचाने के लिए संसाधनों का न्याय संगत इस्तेमाल करना होगा। अब इस बात की सख्त जरूरत हैं की हमे खेती में ऐसे पर्यावरण मित्र तरीकों को अहमियत देनी होगी जिनसे हम अपनी मृदा की उत्पादकता को बरकरार रख सके व अपने प्राकृतिक संसाधनों को बचा सके। उन्होंने कहा कि आज इस देश में शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति या भाग होगा जिस पर जलवायु परिवर्तन का कोई प्रभाव न पड़ा हो। जलवायु परिवर्तन से हर कोई प्रभावित हो रहा है, लेकिन किसानों के इसकी चपेट में आने की संभावना सबसे अधिक रहती है, और वे इससे सर्वाधिक प्रभावित होते भी हैं। उन्होंने कहा जलवायु परिवर्तन का कृषि पर सीधा प्रभाव पड़ता है। जिसके कारण खाद्यान्न की कमी हो जाती है, बुआई के समय में परिवर्तन करना पड़ता है,फसलों की किस्मों को बदलना पड़ता है, भूमि क्षरण अधिक होता है, और फसलों का उत्पादन कम होता है। सामुदायिक रिपोर्टर काशीराम बताते है की डेवलपमेंट अल्टरनेटिव (तारा ग्राम) और अजीमप्रेम जी यूनिवर्सिटी के सहयोग से सामुदायिक रेडियो ललितलोकवाणी द्वारा शुरू हुए कार्यक्रम शुभकल में समुदाय को ध्यान में रखते हुए जलवायु परिवर्तन पर कई ऐसे प्रोग्राम का निर्माण किया गया,जिसमे कि जलवायु परिवर्तन से सम्बंदित समस्त जानकारी थी। काशीराम ने बताया कि कृषि विज्ञान केंद्र खिरिया मिश्र से डा.दिनेश तिवारी ने रेडियो प्रोग्राम से जुड़कर श्रोताओं से कहा की जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने के लिए किसानों को फसलों की ऐसी प्रजातियों का चयन करना होगा, जिनमें शुष्कता एवं लवणता का दबाव सहने की क्षमता हो, और जो बाढ़ एवं अकाल मे प्रभावित न हो। उन्होंने कहा कि सिंचाई जल संबंधी व्यवस्था में सुधार लाने की जरुरत है। जैसे संसाधन, संरक्षण प्रोद्यौगिकी, फसल विविधीकरण, कीट प्रबंधन को सुधारना, मौसम पूर्वानुमान व्यवस्था की जानकारी के अनुसार खेती को अपनाना होगा। किसानो की वर्तमान में चल रही विभिन्न योजनाएं का लाभ ले खेती में हो रहे जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का असर कम करने के लिए, गोबर गैस, सोलर पंप, फसल बीमा योजना, कृषि उपकरण सहायता की योजना जो जलवायु परिवर्तन रोकने में सहायक है। ऐसी ही अनेको योजना का लाभ किसान ले सकते है। श्री काशीराम ने बताया की इसके साथ ही सलाह दी कि प्रत्येक फसल को विकसित होने के लिये एक उचित तापमान, उचित प्रकार की मृदा, वर्षा तथा आर्द्रता की आवश्यकता होती है। इनमें से किसी भी मानक में परिवर्तन होने से फसलों की पैदावार प्रभावित होती है। उर्वरक की जगह कम्पोस्ट खाद, केंचुआ खाद, रासायनिक कीटनाशक की जगह नीम के पेस्ट आदि का प्रयोग करना करे। उन्होंने कहा की वक्त आ गया है कि अब परंपरागत खेती के बजाय कम दिनों में होने वाली नकद फसलों की तरफ रूख करना चाहिए। नकद फसल की खेती में किसान सब्जी, फूल, बागवानी आदि की कृषि कर सकते हैं। साई ज्योति संस्था के सचिव अजय श्रीवास्तव ने बताया कि जब हमने ललित लोकवाणी के माध्यम से जलवायु परिवर्तन पर रेडियो कार्यक्रमों का प्रसारण किया गया, तो कार्यक्रम के माध्यम से हमने अपने श्रोताओं तक पहुंचाने का प्रयास किया। उन्होंने जब कार्यक्रम सुना तो कुछ किसानो के फोन आना शुरू हुए। कार्यक्रम से लोगों ने जलवायु परिवर्तन से जुडी तमाम जानकारी और योजनाओं के बारे में जाना, अपने दायित्यों को समझा और सरकार की योजनाओं का लाभ उठाने की और आगे बढे। वे लोग जो रेडियो सुनते थे उनके जरिये शुभ कल के तमाम प्रावधानों की जानकारी उन लोगो तक भी पहुँची जो रेडियो सुनने में रूचि नहीं रखते थे। शुभकल जैसे कार्यक्रम सामुदायिक रेडियो केंद्र के मूल उद्देश्य को पूरा करने में एक सशक्त भूमिका निभा सकते है। जब ललितलोकवाणी के सामुदायिक रिपोटर काशीराम ने जलवायु परिवर्तन पर सामुदाय से बात करने गए तो समुदाय के लोगों के विचार थे, कि हम जलवायु परिवर्तन के वारे में ज्यादा नहीं जानते है लेकिन असमय, गर्मी, सर्दी, वर्षा का होना ही जलवायु परिवर्तन है। लेकिन ग्राम बरखेरा के चंद्रभान बुनकर बताते है कि कुछ सालो पहले इस क्षेत्र में समय के अनुसार सभी मौसमो का चक्र चलता था। लेकिन अब समझ में ही नहीं आता कि, कब मौसम बदल जाता है। और अब तो फसल में रोग कीट का आक्रमण बहुत ज्यादा हो गया। बिना रासायनिक खाद के फसल से उत्पादन संभव ही नहीं है। दिनों दिन खेत की मिटटी भी खराब होती जा रही है। फसल से उत्पादन भी कम मिलने लगा एक फसल के भरोसे खेती नहीं की जा सकती है। इतना घाटा होता है इसलिए अब मै मिश्रित खेती करता हूं। सामुदायिक रेडियो ललित लोकवाणी के श्रोता बरखेरा के चंद्रभान बुनकर जलवायु परिवर्तन की समस्यों को जानते हुए आर्गेनिक खेती, मिश्रित खेती, अक्षय पद्धति खेती के साथ ही बागवानी भी कर रहे है, घरेलु उत्पादकों से बने कीटनाशको का प्रयोग करते है।

✍️अमित लखेरा
📞 09918289859

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