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ललितपुर: बिना मास्साब कैसे हुइये पढ़ाई, बुरइ हालत में है राजकीय महाविद्यालय

*बिना प्रवक्ता असुविधाओं से जूझ रहा राजकीय महाविद्यालय
*कुछ कर्मचारियों व प्राध्यापकों के भरोसे हैं व्यवस्थायें
ललितपुर। सरकार सपना होता है कि हमारे राज्य का हर शिक्षा का मंदिर हर सुविधाओं से सुसज्जित हो। लेकिन हमारे जनपद में एकमात्र रघुवीर महाविद्यालय स्नातकोत्तर का नजारा कुछ और ही है। उल्लेखनीय है जनपद में इस महाविद्यालय को बुंदेलखंड यूनिवर्सिटी के माध्यम से संचालित हो रहा है, लेकिन छात्र छात्राओं के लिए सुविधा के नाम पर कुछ भी नहीं। उत्तर प्रदेश सरकार तमाम मदों में करोड़ों रुपए खर्च कर रही है, लेकिन जनपद का यह महाविद्यालय आज भी वित्त के लिए तड़प रहा है। बताते चलें इस महाविद्यालय की स्थापना 1981 में लगभग 5 हेक्टेयर यह महाविद्यालय बना हुआ है 21 कक्षाएं यहां पर संचालित होती है। लेकिन टीचर्स का यहां पर भारी अभाव है। बीकॉम एमकॉम के लिए मात्र एक प्रवक्ता कार्यरत है, जबकि 5 पद के लिए स्वीकृति है। इसी प्रकार रसायन के लिए 4 पद स्वीकृत है, एक भी प्रवक्ता नहीं है। स्पोर्ट टीचर के लिए एक पद स्वीकृत है लेकिन आज तक एक भी टीचर नहीं है। इतना ही नहीं स्थाई प्राचार्य का भी रिटायरमेंट के बाद अभी तक नए प्राचार्य नहीं आए हैं। इस महाविद्यालय में 2 पीयून कार्यरत है जो हर तरह का महाविद्यालय को सहयोग करते हैं। सूत्रों से ज्ञात हुआ है इस महाविद्यालय में टोटल 50 छोटे बड़े अफसरों का स्टॉप सुनिश्चित है। लेकिन मात्र 14 ही से काम चल रहा है। ऐसी विकट स्थिति में क्या पढ़ाई होगी क्या ? बच्चों का भविष्य सरकार को भली-भांति सूचना चाहिए और जनपद ललितपुर तो एक उदाहरण है। निश्चित ही उत्तर प्रदेश के अन्य जिलों में भी महाविद्यालयों का यही हाल होगा, जबकि प्राइवेट महाविद्यालय में ना तो स्टाफ की कमी है। ना ही संसाधनों की इस महाविद्यालय का मुख्य गेट सेसड़क जाती हैं। वह भी इतनी जर्जर अवस्था में है। महाविद्यालय की पोल खोल देती है, जबकि करोड़ों रुपए की लागत से बनी यह बिल्डिंग अपनी दुर्दशा पर आंसू ही नहीं बहा रही है। छात्र-छात्राओं का भी भविष्य दांव पर लगा है। जनहित में उत्तर प्रदेश शासन से भारतीय जनसम्मान पार्टी के जिलाध्यक्ष जावेद किरमानी ने महाविद्यालय की व्यवस्थाओं को एवं प्रवक्ताओं के पदों को भरने की मांग की है, जिससे छात्र-छात्राओं का भविष्य अधर में ना लटके उज्जवल हो क्योंकि आज के बच्चे ही कल देश का भविष्य कहा जाता है।

केतन दुबे- ब्यूरो रिपोर्ट

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