राहुल कांग्रेस के दुर्दिन
साभार @ राकेश अचल ( वरिष्ठ पत्रकार )
देश में नयी सरकार को गठित हुए एक माह पूरा हो गया लेकिन हारी हुई राहुल कांग्रेस सन्निपात से बाहर नहीं आ पायी है,सत्रहवीं संसद में कांग्रेस की हैसियत को लेकर असमंजस जस का तस है।कांग्रेस हर दशक में अपना चेहरा बदलती हुई आगे बढ़ी है लेकिन राहुल कांग्रेस बनने के बाद अचानक ठिठक गयी है ।कांग्रेस की ये ठिठकन ही हैरान करने वाली है
कांग्रेस भाजपा की तरह युवा राजनितिक दल नहीं है।कांग्रेस की उम्र 134 साल की हो गयी है और वोमेश चंद्र बनर्जी से राहुल गांधी के आने तक उसे 85 और अध्यक्षों के साथ काम करना पड़ा है लेकिन राहुल गांधी कांग्रेस के सबसे कमजोर अध्यक्ष साबित हुए हैं ।राहुल ने मात्र १९ माह में ही अपने कंधे झुका दिए हैं ।राहुल अपने नाना पंडित जवाहरलाल नेहरू,अपनी दादी श्रीमती इंदिरा गांधी और तो और अपनी माँ श्रीमती सोनिया गांधी की तरह कांग्रेस के लिए एक युग नहीं बन पाए ,जबकि नयी सदी की कांग्रेस राहुल गांधी के ही भरोसे खडी है
सत्रहवीं लोकसभा के चुनावों में कांग्रेस को अपेक्षित परिणाम न मिलने के बाद राहुल गांधी ने नैतिकता कहिये या हताशा कहिये अपने पद से इस्तीफा दे दिया लेकिन राहुल गांधी की कृपा से प्रांतों में अध्यक्ष बने किसी भी अध्यक्ष या मुख्यमंत्री ने पराजय की जिम्मेदारी लेते हुए अपने -अपने पद नहीं छोड़े ,यहां तक की मध्यप्रदेश के कमलनाथ ने भी जिनके सूबे मध्यप्रदेश की 29 में से केवल एक सीट कांग्रेस के हिस्से में आयी थी ।अपने साथियों की बेशर्मी ने राहुल को अंदर से तोड़ दिया और अब वे बीते एक महीने से अपना इस्तीफा वापस न लेने की हठ किये बैठे हैं ।
राहुल कांग्रेस की हताशा को पहचानने से पहले आपको कांग्रेस के इतिहास का विहंगावलोकन करना पडेगा ।कांग्रेस में जब तक नियमित चुनाव होते आहे ,कांग्रेस मजबूत रही यहना तक की देश की आजादी की लड़ाई का नेतृत्व भी कांग्रेस के हाथ में रहा।आजादी के बाद भी कांग्रेस ने नेहरू युग में ठीकठाक काम किया।नेहरू कांग्रेस के ऐसे अध्यक्ष थे जिन्हें लगातार ८ साल काम करने का अवसर मिला ।कांग्रेस का चेहरा,चाल और चरित्र बदलना शुरू हुआ १९७५ से ,जब तत्कालीन अध्यक्ष देवकांत बरुआ ने इंदिरा इज इंडिया ,इंडिया इज इंदिरा कहकर कांग्रेस अध्यक्ष पद की गरिमा को दाग-दगीला किया ।बरुआ के बाद के ब्रम्हानंद रेड्डी भी कामयाब अध्यक्ष नहीं बन सके और १९७८ में जैसे ही श्रीमती कांग्रेस अध्यक्ष बनीं कांग्रेस में एक नए युग का श्रीगणेश हुआ जो राहुल गांधी तक जारी है।इस बीच में पीव्ही नरसिम्हा राव और सीताराम केसरी भी आये गए लेकिन कांग्रेस एक बार गांधी परिवार के हाथ आयी तो फिर बाहर नहीं निकली
आज कांग्रेस इसी गांधी परिवार की जकड़ से मुक्त होने के लिए छटपटा रही है ।गांधी परिवार के युवा नेता राहुल गांधी ने अध्यक्ष पद से अपना त्यागपत्र दे दिया है।कांग्रेस को अब नया अध्यक्ष मिल नहीं रहा और शायद जब तक ये परिवार नहीं चाहेगा,मिलेगा भी नहीं ,लेकिन अब गांधी परिवार की मुठ्ठी खुल चुकी है। श्रीमती सोनिया गांधी गाँधी परिवार की अंतिम लौह महिला साबित हुईं उनके बाद न राहुल चले और न उनकी मदद को आयी प्रियंका बाड्रा।सवाल ये है की अब कांग्रेस को आगे ले कौन जाएगा ।कांग्रेस का आंतरिक लोकतंत्र कैसा है ये जग-जाहिर है।इस आंतरिक लोकतनत्र में से लोकतांत्रिक तरीके से नए अध्यक्ष का चुनाव असम्भव है और जब तक चुनाव के माध्यम से कोई अध्यक्ष नहीं बनता कांग्रेस का कल्याण होना सम्भव नहीं है
कांग्रेस की दुर्गति से भाजपा को अवश्य फायदा हो रहा है किन्तु देश को नुक्सान हो रहा है,क्योंकि भाजपा के विरुद्ध ऐसा कोई राजनितिक दल नहीं है जिसका अखिल भारतीय स्वरूप और पहचान हो ।कांग्रेस ही भाजपा का विकल्प है,।ये अतिश्योक्ति नहीं हकीकत है क्योंकि बिखरा हुआ विपक्ष भाजपा को यत्र-तत्र सर्वत्र नहीं रोक सकता ,कोई कहीं रोक सकता है ,कोई कहीं लेकिन सब जगह केवल कांग्रेस ये काम कर सकती थी किन्तु कांग्रेस ने भी अब लगता है हथियार डाल दिए हैं ।संसद के मौजूदा स्तर में कांग्रेस की कोई रणनीति सामने नहीं आयी,आ भी नहीं सकती क्योंकि नेतृत्व विहीन कोई भी दल संसद को आश्वस्त नहीं कर सकता ।
बहरहाल राहुल के सार्वजनिक रूप से क्षोभ जताये जाने के बाद कांग्रेस के सौ से अधिक पदाधिकारियों ने अपने पद से इस्तीफे दिए हैं लेकिन इस प्रहसन से भी कोई बात बनने वाली नहीं है ।एक बूढ़े राजनीतक दल में नयी जवानी पैदा करने के लिए कांग्रेस को राहुल का विकल्प यथाशीघ्र देना होगा अन्यथा बिलम्ब के कारण कांग्रेस की लुटिया डूब जाएगी,जो नहीं डूबना चाहिए ।कांग्रेस को मोदी और शाह जैसे दो आक्रामक और पूर्ण कालिक नेता की आवश्यकता है ।इनके बिना कांग्रेस का उद्धार सम्भव है