चौकीदार के लट्ठ की आत्मकथा (#मैं भी चौकीदार)
नमस्कार देशवासियो
मैं एक लट्ठ। कोई आम लाठी नहीं। एक ऐसा लट्ठ जो इस मुल्क के मुख्य चौकीदार के हाथ में रहता हूं। यानि आप लोगों की भाषा में एक वीआईपी लट्ठ। राजतंत्र में मुझे राजदंड नाम दिया गया था। हर राजा जब कार्यभार संभालता था तो उसके सर पर राजमुकुट राजधर्म निभाने का अधिकार देता था और राजदंड उस राजधर्म को पूरा करने की शक्ति प्रदान करता था।
राजतंत्र गया लोकतंत्र आया। इस लोकतंत्र में मुझ राजदंड की सम्पूर्ण शक्तियां संविधान में निहित कर दी गईं। देश के लोग मेरे चौकीदार का चुनाव करने लगे और वही चौकीदार मेरा उपयोग दुरुपयोग करता रहा।
आजादी के बाद से एक से एक चौकीदार आए। देश की चौकीदारी का वादा लिए। मैंने सबकी कार्यशैली देखी है। मैंने अपने प्रथम चौकीदार पंडित नेहरू को देश बनाते देखा। मैनें लाल बहादुर शास्त्री सा दुबला पतला चौकीदार भी देखा। जिसने मेरा उपयोग किसी को भय दिखाने के लिए नहीं किया बल्कि जवान और किसान दोनों के हाथ में मुझे सौंप दिया। मैने इंदिरा गांधी के रूप में देश की पहली महिला चौकीदार का भी साथ पाया। जिसने पूरे देश और दुनिया को बताया कि जब चौकीदार का लट्ठ से सही दिशा में काम लिया जाता है तो पाकिस्तान जैसे मुल्क इसी लट्ठ से दो टुकड़े हो जाते हैं। वहीं जब यही लट्ठ चौकीदार के सनकपन का हथियार बन जाए तो अपने ही देश के लोगों के जीवन में इमरजेंसी जैसे घाव बना देता है।
खैर समय बीतता गया। कई चौकीदार आए और गए। किसी ने मेरा थोड़ा बहुत उपयोग किया तो किसी ने दुरुपयोग।
बीसवीं सदी के आखिर में एक दिलचस्प चौकीदार के हाथ में रहने का मुझे अवसर मिला। अटल नाम का यह चौकीदार मुझ लट्ठ से कहीं ज्यादा ताकत तो अपने शब्दों में रखता था। मेरी जरूरत ही नहीं पड़ती थी उसके पहले कभी अपने व्यंग्य से तो कभी कविताओं से विपक्षी को तोड़ देता था। लेकिन जब पोखरण विस्फोट हुआ तो उसने अमेरिका और ब्रिटेन सरीखी महाशक्तियों के सामने मुझे मजबूती से आगे किया। सारी दुनिया को इस अटल चौकीदार ने इस लट्ठ की ताकत दिखाई।
इस अटल चौकीदार की विदाई के बाद मुझे देश में पहली बार एक संविदा चौकीदार मिला।
संविदा यानि जिनके पास चौकीदार की वेशभूषा, सीटी, और मैं यानि लट्ठ सब कुछ दिया तो गया था लेकिन सीटी बजाने से लेकर लट्ठ को छूने तक के अधिकार कहीं और गिरवी रखे हुए थे। शुरू शुरू में मुझे तकलीफ हुई परंतु जब मेरा चौकीदार ही किसी और के वश में था तो मैं आखिर कब तक अफसोस मनाता।
बेअसरदार चौकीदार के करीब दस बरस पूरे होने के साथ ही उनकी विदाई की चर्चा चल रही थी। तभी गुजरात के अखाड़े से एक बड़े पहलवान का नाम सुनाई दिया। देश में हल्ला हुआ कि अबकी यही चौकीदार बनेगा देश का। सच पूछिए खबर सुनते ही पिछले 10 साल से एक ही अवस्था में पड़े इस लट्ठ ने तत्काल अपनी कमर सीधी करके अपनी अकड़ वापस पाने के जतन शुरू कर दिये। सुबह शाम तेल पिया। कसरत करी। ताकि ऐसे नामचीन पहलवान के चौकीदार बनने पर अपन लट्ठ कहीं से भी उसकी कमजोरी न बनें बल्कि ताकत बनें।
आखिरकार मई 2014 में गुजराती पहलवान ने देश के चौकीदार का कार्यभार संभाला। काम संभालते ही जब उसने घोषणा की कि वह देश का चौकीदार है तो यकीन मानिए कि इस लट्ठ की बांछें खिल गईं। लगा कि अब आया है कोई जानदार चौकीदार। देश में चोरी बंद, महिलाओं से अत्याचार बंद, भ्रष्टाचार तो भूल ही जाओ। इसी खुशी में फूलकर अपनी मोटाई का लगभग दोगुना हो चुका था यह लट्ठ। करीब एक साल इंतजार किया। लगा कि चौकीदार अभी सही गलत की पहचान कर रहे हैं। ऐसे ही किसी पर लट्ठ थोड़े ही उठा लेते हैं भला।
इसी बीच मंहगाई में पेट्रोल डालकर आग लगी। महिला अपराध बढ़े।
सब कुछ ऐसा जैसे रुटीन हो
हम लट्ठ थोड़ा बहुत उठने का प्रयास करें तो चौकीदार उल्टा शांत करा दे
आईपीएल का छिछोरा ललित मोदी, बीयर बादशाह विजय माल्या मेरी आंखों के सामने देश छोड़ गया। चौकीदार ने मुझ लट्ठ का उपयोग करना तो छोड़िए सीटी तक न बजाई। इसके बाद भी मैनें उफ तक नहीं की। लेकिन जब मेरे सामने, चौकीदार के ड्यूटी पर होते हुए, देश के 11500 करोड़ रुपये लेकर एक चिरकुट चोर फरार हुआ तो मैं लट्ठ मारे शर्म के खुद ही सरक कर जमीन पर गिर पड़ा। चौकीदार ड्यूटी पर था। उसके गले में सीटी भी थी पर न बजाई
उसके हाथों में लट्ठ यानि मैं भी था पर न उठाया। मैं प्रत्यक्ष गवाह हूं कि चौकीदार जाग रहा था। परंतु उसने चंद पलों के लिए आंखों को मूंद लिया। न सहा गया मुझसे
खुद से घृणा हो रही है इस लट्ठ को। क्या मतलब हुआ लट्ठ बनने का। इससे बेहतर तो छोटा ही रहकर किसी प्राइमरी स्कूल के टीचर के हाथ की छड़ी बनकर विद्यार्थियों का जीवन बना रहा होता। यदि देश का चौकीदार के हाथों का यह लट्ठ इतना लाचार हो गया तो देश का क्या हो रहा होगा अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है।
इतनी व्यथा के बाद मेरे साथी लट्ठों ने ताने मारे। तू दुर्भावना से पीड़ित होकर अपने चौकीदार को बुरा भला कह रहा है। इससे पहले जैसे तूने बड़ा चोरों को पकड़वाया है।
यह सुनकर ही मेरे दिल का असल दर्द फूट पड़ा। भाई तकलीफ ज्यादा इसलिए है क्योंकि उम्मीद ज्यादा थी। नये चौकीदार ने कहा था कि खाऊंगा न खाने दूंगा। इसीलिये खुद को तेल पिला कर तैयार किया था। इसके पहले तो सब राजा बनकर आते थे, यह चौकीदार बनकर आए थे। उम्मीदों का तकलीफों से सीधा वास्ता है। विराट कोहली शतक पूरा नहीं करता तो दुख होता है न कि बुमराह के जल्दी आऊट होने पर। कुछ भी हो चौकीदार की गलतियों से यह लट्ठ बदनाम भी है और दुखी भी। शायद कभी पलटवार न कर दे यह लट्ठ अपने ही चौकीदार पर