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प्यार इश्क़ और मोहब्बत

सचिन चौधरी सम्पादक – बुंदेली बौछार

प्यार इश्क़ और मोहब्बत
जो भी इनका नाम ले
पहले दिल को थाम ले
नाम लेने से ही क़यामत हो जाती है

हमारे ज़माने की किसी फिल्म का ये गाना बरबस याद आया। बरेली वाले विधायक जी की पुत्री की प्रेम कहानी कम नौटंकी देख कर। दरअसल सबसे पहले तो इस प्रेम कहानी के सभी किरदारों हीरो , हेरोइन , विलेन (जो जिसको समझ ले ) को हार्दिक आभार। इस हिंदुस्तान को यह बताने के लिए कि हमारा देश
आज भी 21 वीं सदी में सिर्फ कैलेंडर में पहुंचा है , हकीकत में नहीं ।

इस घटना में हीरो कौन है यह तो किसी का बाप भी नहीं बता सकता , लेकिन यह कहानी मल्टी विलेन युक्त जरूर बन गई है। सबसे बड़ी बात यह कि मुझे तो कोई ऐसा न मिला जो इस विषय पर बेवकूफी न दिखा रहा हो।

शुरुआत पिता जी और बिटिया जी के रिश्ते से ही करते हैं। दबंग राजनैतिक पिता की बिटिया जिसे निश्चित तौर पर उसके पिता ने बड़ी सुख सुविधाओं से पाला होगा। लेकिन कुछ चूक तो हुई कि बिटिया हाथ से निकल गई। अब चूक भी ऐसी हुई कि बात जात विरादरी और स्टेटस से भी दूर ऊंची और नीची जाति के ईगो तक आ पहुंची। कई मुकदमाधारी माननीय विधायक जी की नाक पर मक्खी बैठी सो शायद उन्होंने तलवार से मक्खी हटाने की सोची और इस चक्कर में नाक कट गई। काश कि उस मक्खी को हाथ से , प्यार से भगाने की कोशिश की होती। खैर जंग और मोहब्बत में सब कुछ जायज है इसका मतलब यह नहीं कि जंग और मोहब्बत में एक ही तरह के हथियारों का इस्तेमाल किया जाये।

खैर एक तो इज्जतदार पिता , दूसरा मुकदमाधारी प्रतिष्ठित व्यक्ति और तीसरा उत्तर प्रदेश की सत्ताधारी रोमियो स्क्वाड वाली पार्टी का विधायक। इतना सब होने के चलते विधायक जी ने बिटिया और दामाद जी को ”अपने तरीकों” से समझाने का प्रयास न किया होगा यह सोचना भी बेमानी होगा।

अब आते हैं बिटिया पे। धन्य हो बेटा आप। इस देश में अब 50 % से ज्यादा शादियां लव मरीज होने लगीं हैं। और बड़ी संख्या में अंतर्जातीय भी। तुमने मोहब्बत के नशे में जो भी किया उसकी हिम्मत की दाद तो बनती है। लेकिन तुम्हारे अंदर वाकई राजनैतिक खून है। जिसमे निजी स्वार्थ से ज्यादा दूसरों को नुकसान मजा देता है। तुमने भी यही किया। शादी करके तुम्हारा प्राथमिक मकसद सफल हो गया। इसके बाद मान भी लिया जाये कि तुम्हे धमकियां मिल रही थी सो तुम वीडियो जारी करके लगभग सुरक्षित हों गईं थी। लेकिन तुम्हे तो राजनैतिक चाल खेलनी थी। सो भरे बाजार 2 दिन तक अपने बाप की कटी हुई नाक पे नमक छिड़कने का काम करती रहीं। तुम्हारे शादीशुदा भविष्य का तो तुम जानो लेकिन तुममें अपने पिता की तरह सफल नेता बनने के पूरे गुण हैं।

अब बात मीडिया की। इस पूरे वाक्ये में मीडिया का कहां दोष है भई ? देश ने पहले ही उसे बिकाऊ घोषित कर दिया। सालों से बिक रहा है। अब कोई खरीददार नहीं मिल रहा सो दूसरों की इज्जत नीलाम करके अपने कर्मचारियों की दाल रोटी का इंतजाम कर रहा है। पेट की आग क्या क्या नहीं करवाती जनाब। मीडिया पर खुद जिन्दा लाश है जनाब। उसे तो आईसीयू में बच्चों की चीखों में भी अपनी दाल रोटी दिखाई देती है और बाप बेटी के पंगे में भी।

अब बात सबसे जरूरी महान फेसबुक विचारक , व्हाट्स एप्प मनीषियों और समाज सेवियों की।

पहले कुछ सवाल। अगर यह लड़का ब्राह्मण ,बनिया और लड़की दलित होती तो ? क्या आप उसी पक्ष की तरफदारी कर रहे होते जिसकी आज कर रहे हो ? यदि विधायक आम आदमी पार्टी का होता तो आप केजरीवाल को नहीं गरिया रहे होते ? क्या विधायक जी भाजपा के न होते तो निशाने पर ज्यादा होते या बिलकुल नहीं होते ?

हे समाज के फर्जी सुधारको , सच्चाई यह है कि तुम्हे इस बात से कोई लेना देना नहीं है कि किसके साथ अन्याय हो रहा किसके साथ न्याय। आधों की समस्या यह है कि उनके समाज की लड़की को दूसरी समाज वाला कैसे लेके भाग गया। आधे इस बात से खुश हैं कि उनके समाज वाला विधायक की लड़की को ले गया लेकिन अब लड़के की जान की उन्हें चिंता है। नारीवादी लड़की की चिंता में दुबले हुए जा रहे हैं और पुरुषवादी साक्षी के बाप की जगह खुद को देख रहे हैं।

इस देश में प्रेम विवाह तो छोड़िये लड़का लड़की को साथ देख लेने पर भी खाप पंचायतें ऐसी सजा देती हैं जिनसे रूह काँप जाये। तब आप मौन होते हैं क्यूँकि न तो वो केस हाई प्रोफाइल होता है और न वहां जाति सम्मान का कोई मसला होता है और न ही कोई नेतागिरी।

इसी देश में बलात्कार के आरोपी राम रहीम को जेल में सद आचरण के नाम पर चुनावी फायदे के लिए रिहा करने के लिए लोग सिफारिश करते हैं और आप मौन हैं

इसी देश में बलात्कारियों के समर्थन में तिरंगा यात्रा निकलती हैं और आप मौन हैं

हम और आप वो हैं जो बलात्कार की पीड़ित और बलात्कारी में भी धर्म और जाति के आधार पर अपनी प्रतिक्रिया देने लगे हैं सो ये तो मात्र एक प्रेम विवाह का मामला है।

खैर

कुछ उत्साही कुंवारों की कुंठा पर भी कुछ बात। आज जो पूरे सीन में विधायक पिताजी के साथ खड़े हैं उनमे से अधिकतर (सब नहीं ) किसी न किसी की बिटिया को भगाने का ख्वाब पाले बड़े हुए हैं। सो प्यारे मोहन,, खुद सुधर जाओ फिर ज्ञान दो , यह तुम्हारी कुंठा , या हताशा तुम्हे महाज्ञानी बनने पर विवश कर रही है।

सबसे आखिरी में बात विधायक जी के दामाद की। गजब हुनरमंद और कलेजे वाले हो गुरु। सो सलाम तुम्हें। लेकिन एपिसोड के आखिरी में विलेन तुम ही होंगे। आधे विलेन तो तुम अपनी धर्म पत्नी से ससुर जी की छीछालेदर करवाके खुद बन गए और आधे विधायक जी तुम्हे अपने तरीके से बनवा ही देंगे। लेकिन तुमसे एक गुजारिश है। कम से कम शादी को किसी भी हाल में चलाना। तुम्हारे विवाह की असफलता न जाने कितनों के जीवन पर प्रभाव डालेगी फ़िलहाल इसका अंदाजा तुम्हें खुद भी न होगा।

अब हमारे मन की बात – शादी तो हो ही चुकी है। क्या किसी सामाजिक संगठन , राजनैतिक समूह , मीडिया में इतनी ताकत नहीं बची है कि मामले की शुरुआत में ही बाप बेटी को एक करने की पहल की जाती ? लड़का दलित है तो क्या , बाप विधायक है तो क्या , पिता और पुत्री का रिश्ता अद्भुत होता है। कोशिश होती तो कोमल बेटी भी पत्थर न होती और पत्थर दिल बाप भी पिघल जाता। लेकिन यदि यह हो जाता तो बाकि बीच वालों को क्या मिलता।
विधायक की बिटिया की धूमधाम से शादी होती तो उसने बैंड बाजों से लेकर , हिजड़ों तक का हिस्सा होता अब नहीं हो पाई सो यह हिस्सा मीडिया से लेकर समाज के ठेकेदार खुद वसूल रहे हैं।

लेख सार – जहां मोहब्बत होगी , वहां बगावत होगी। लेकिन जहां मोहब्बत असली होगी वहां इज्जत की फ़िक्र जरूर होगी।अपनी भी और अपनों की भी

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