बुंदेली
ज़िंदगी की अनमोल सीख बुंदेली में
मूर्ख को समझाना
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बिरथाँ मूरख खों समझाबै,
ग्यान गाँठ कौ जाबै।
मीठीं बातें लगें नीम सीं,
सुन-सुन गुस्सा खाबै।
पानी के परतन चूना सौ,
गरम होय उफनाबै।
प्रताप हाथ में डंडा राखौ,
तुरत समझ बौ जाबै।
मन पर नियंत्रण
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मन खों बस में करकें राखौ,
इतै उतै ना झाँखौ।
लहर उठै पानी में जा छन,
बिम्ब बनै ना बाँकौ।
मनुआँ में हरि नाम बसाले,
उजरौ दर्पन राखौ।
निज सरूप आप पैचानौ,
अन्तर्मन में झाँकौ।
प्रताप बिराजें मन में तेरे,
जड़ चेतन घर बाकौ।
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मन खों बस में करकें राखौ,
इतै उतै ना झाँखौ।
लहर उठै पानी में जा छन,
बिम्ब बनै ना बाँकौ।
मनुआँ में हरि नाम बसाले,
उजरौ दर्पन राखौ।
निज सरूप आप पैचानौ,
अन्तर्मन में झाँकौ।
प्रताप बिराजें मन में तेरे,
जड़ चेतन घर बाकौ।
घमंड से दूरी
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गरवे काहू पै ना रयियौ,
आँखन सें गिर जयियौ।
अच्छे बुरे गये जा जग सें,
अपयश गली न धरियौ।
रावन कंस अधिक गरवे ते,
उनकी गति चित लयियौ।
डोर प्रताप नेह की जोरौ,
झटक टोर ना दयियौ।
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गरवे काहू पै ना रयियौ,
आँखन सें गिर जयियौ।
अच्छे बुरे गये जा जग सें,
अपयश गली न धरियौ।
रावन कंस अधिक गरवे ते,
उनकी गति चित लयियौ।
डोर प्रताप नेह की जोरौ,
झटक टोर ना दयियौ।
प्रसिद्द बुंदेली कवि प्रताप @ बुंदेली बौछार