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दबदलुओं पर फिल्म अभिनेता आशुतोष राणा ने कुछ कमाल लिखा है , जरूर पढ़िए

•॥#दल_नहीं_दिल_बदल॥•आशुतोष_राना
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हाल ही में पार्टी बदलकर फुर्सत हुए अपने जनप्रतिनिधि को बड्डे ने घंटाघर चौगड्डे पर पकड़ लिया और छूटते ही बोले- तुमने कल्ल क़सम खायी थी कि मरते दम तक साथ ना छोड़ूँगा, हमारे बच्चे, नाती-पोतों को भविष्य में हमारे ऊपर फक्र होना चाहिए कि उनके बाप दादा ऐंसे थे जिन्ने कठिन समय में उस पाल्टी का साथ दिया जिसने उनको कारकर्ता से नेता बनाया, कल्ल तो तुम छाती ठोंक के बोल रहे थे कि समाज में जे संदेश जाना चाहिए कि हमारे पापाजी बिकाऊ नई टिकाऊ हते !! तब रात भर में ऐंसों का हो गओ राजा कि तुमने पलटी मारके पाल्टी बदल लई ?
राजा ने दार्शनिक अंदाज़ में कहा- बड्डे, जे दुनिया उसी पर फ़क्र करती है जिसखों समाज की ‘फ़िक्र’ होती है। हमें स्त्री के मान सम्मान की फ़िक्र है, हम किसी नारी के आदेश उसकी इच्छा की अवहेलना नहीं कर सकते, ऐईसे आय हमने पार्टी बदल लई।
बड्डे अवाक् से अपने निवर्तमान जनप्रतिनिधि को देखते हुए बोले- कल्लई उस पत्तरकार के माइक में अपना मों ( मुँह ) घुसाकर तुमने कहा था कि “ पैर पिछाड़ी जान ना दें हैं, जंघा टेक लड़े मलखान”!
राजा बात काटते हुए बोले- आप ग़लत बात कर रहे हो बड्डे, जे बात हमने कल नहीं परसों कही थी। क्योंकि परसों तक हम लच्छ्मी जी की लाइट में नई थे, लच्छ्मी जी ने लाइट तो कल रात हमारे मों पर मारी तब कहीं जाके हमाइ आँखें खुलीं।
कल रात लक्ष्मी जी हमारे घरे आयीं और रोन लगीं, हम घबड़ा गए ! हमने तुरतयीं उनके पाँव पड़े और उनसे पूछा- का हो गया माताराम काय खों रो रईं हों ??
बे बोलीं- बेटा राजा, जो देखो बोई औरतों की बेज्जती कर रहा है। तुम जैसे सुलच्छनी बहुत कम हैं जो लच्छ्मी की कदर करते हैं, तो बेटा हम बहुत आशा से तुमाए पास आए हैं, तुम हमें चुपचाप अपने पास लुका लो और उन लोगों का साथ छोड़ दो जो लोग औरतों को आई मतलब माँ जगह उसके आंगे ‘टम’ लगाके उसखों माटम यानि मातम कहकर बदनाम करते हैंगे।
हमने उनसे कहा- कैसी बातें कर रहीं हैं आप ? हम तो विपत्ति के साथी हैं “मीत विपत्ति के ढ़ेबा हैं ऐसे मीत मिलन के नाँय।” ऐसे टेम पर हम पाल्टी बदलेंगे तो हमारी भेंकर बेज्जती हो जाएगी।
हमारा इतना कहना था बड्डे कि लच्छ्मी जी ने विकराल रूप धारण कर लिया, अब तक हमने सिर्फ़ दो हाथ वाली लक्ष्मी देखी थीं मगर उनके आठ हाथ निकल आए और उन्ने अपने आठई हाथों में पकड़ी हुई ‘मुद्रा’ से हमें सूँटना शुरू कर दिया !! हम क्या बताएँ आपखों बड्डे, मुगदर की मार से तो आदमी सिर्फ़ सूजता है उसके बचने की सम्भावना बनी रहती है लेकिन ‘मुद्रा’ की मार बड़ी भेंकर होती है बो इंसान खों सुजाती नहीं, फुला देती है। लच्छ्मी जब मारती हैं तो आदमी खों लगता है की उसके प्राण अब निकले की तब निकले।
लक्ष्मी जी भेंकर क्रोध में आके बोलीं- बेट्टा, यदि तुम घर आइ लक्ष्मी का अपमान करोगे तो ध्यान रखना देवता तुम्हारे यहाँ निवास नहीं करेंगे। क्योंकि जहां नारियों की पूजा, पूछ-परख होती है भंई पर देवता निवास करते हैं। इसलिए जो हम तुमसे कह रहे हैं बौ करो। ध्यान धरो राजा, जहां लक्ष्मी होती है वहाँ पर लक्ष्मीपति विष्णु अबढ़ारे चले आते हैं और जब परमसत्ता तुमाए साथ हो तब जे वाली सत्ता तो आपई आप तुमाए जोरे बनी रहेगी, सो चिंता की कोई बात नई है।
फिर मैया हमें समझाते हुए बोलीं- तुम इसखों पाल्टी नई ‘बाल्टी’ बदलना मानों। बाल्टी बदलने में कोई दोष नहीं है, काय से पानी तो एक ही तालाब का है ना.. का समझे ?
सो बड्डे आप हमें ग़लत मत समझो हम पक्के समाजसेवी हैं हमको समाज की फ़िक्र है, लच्छ्मी जी हमाए घर डेरा डाल चुकी हैं उन्ने हमसे कहा- कि हर औरत लक्ष्मी होती है जो आदमी लक्ष्मी की क़दर करता है वही आदमी विशेष लच्छनों से युक्त विलक्षण आदमी कहलाता है। तो हमने लच्छमी जी की ख़ातिर, उनके कहने पर नारीशक्ति की मान मर्यादा की रक्षा के लिए पाला नहीं ‘आला’ बदला है, अब हमें साफ़-साफ़ सुनाई पड़ता है कि “यत्र नारियस्तु पूज्यंते रमन्ते तत्र देवता।”
बड्डे ने बहुत गम्भीरता से राजा को देखा और कहा- अब एक बात हमाइ सोई सुनत जाओ, आठ हाथ वालों की ना दोस्ती अच्छी ना दुश्मनी। काए से जे जब देते हैं तो अपने आठ हाथों से देते हैं जिसको तुम अपने दो हाथों से समेट नहीं पाते, लेकिन जब जे वापस लेते हैं तो अपने दो हाथों से तुमाए दोनों हाथ पकड़ लेते हैं और बाक़ी के बचे छः हाथों से सब समेट लेते हैं। तब आदमी की हालत बिलकुल ऐसी हो जाती है कि “आओ लच्छू, जाओ लच्छू, ना इते कच्छू, ना उते कच्छू।~#आशुतोष_राना 📷

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