हिंदू शास्त्र कहते है कि जो परिजन अपने शरीर को छोड़कर चले गए हैं चाहे वे किसी भी लोक में अथवा रूप में हों, उनकी तृप्ति और उन्नति के लिए श्रद्धा के साथ जो तर्पण किया जाता है, उसे हम श्राद्ध कहते है। मान्यता है कि सावन की पूर्णिमा से ही पितर मृत्यु लोक में आ जाते हैं और नव अंकुरित कुशा की नोकों पर विराजमान हो जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि पितृ पक्ष में हम जो भी पितरों के नाम का निकालते हैं, उसे वे सूक्ष्म रूप में आकर ग्रहण करते हैं। श्राद्ध और पिंड दान तीन पीढ़ियों तक का करने का विधान है। इस वर्ष श्राद्ध 2 सितंबर, बुधवार से प्रारंभ हो रहे हैं और ये 17 सितंबर तक चलेंगे। श्राद्ध पक्ष में पितरों के निमित्त तर्पण किया जाता है। पितरों का आशीर्वाद पाने के लिए इक्छा और सामर्थ्यानुसार दान-पुण्य के कार्य किए जाते हैं। श्राद्ध पक्ष को पितृ पक्ष भी कहते है। हिन्दू पंचांग के अनुसार, श्राद्ध पर्व भाद्रपद पूर्णिमा से प्रारंभ होकर अश्विन मास की अमावस्या तक चलते हैं।
पिंड दान सबसे पहले पिता का, उसके बाद दादा का और फिर परदादा के लिए किया जाता है। शास्त्रों में यही श्राद्ध की विधि बतायी गई है। पिंडदान करते समय ध्यान लगाकर गायत्री मंत्र का जप तथा सोमाय पितृमत्ते स्वाहा मंत्र का जप करना चाहिए। महाभारत के अनुसार, श्राद्ध में तीन पिंडों का विधान है। जिसमें पहला पिंड जल में, दूसरा पिंड पत्नी एवं गुरूजनों को और तीसरा पिंड अग्निदेव को समर्पित करना चाहिए। ऐसा करने से मनुष्य की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
पुराणों में कई कथाएँ इस उपलक्ष्य को लेकर प्रचलित हैं हिन्दू धर्म में सर्वमान्य श्री रामचरित में भी श्री राम के द्वारा श्री दशरथ और जटायु को गोदावरी नदी पर जलांजलि देने का उल्लेख है एवं भरत जी के द्वारा दशरथ हेतु दशगात्र विधान का उल्लेख भरत कीन्हि दशगात्र विधाना तुलसी रामायण में हुआ है।
भारतीय धर्मग्रंथों के अनुसार मनुष्य पर तीन प्रकार के ऋण प्रमुख माने गए हैं- पितृ ऋण, देव ऋण तथा ऋषि ऋण। इनमें पितृ ऋण सर्वोपरि है। पितृ ऋण में पिता के अतिरिक्त माता तथा वे सब बुजुर्ग भी सम्मिलित हैं, जिन्होंने हमें अपना जीवन धारण करने तथा उसका विकास करने में सहयोग दिया।
जब बात श्राद्ध कर्म की आती है तो बिहार स्थित गया जी का नाम बड़ी प्रमुखता व आदर से लिया जाता है। समूचे भारत वर्ष में हीं नहीं सम्पूर्ण विश्व में दो स्थान श्राद्ध तर्पण हेतु बहुत प्रसिद्द है पहला बोध गया और दूसरा विष्णुपद मन्दिर। विष्णुपद मंदिर वह स्थान माना जाता है कि स्वयं भगवान विष्णु के चरण उपस्थित है, जिसकी पूजा करने के लिए लोग देश के कोने-कोने से आते हैं। गया में सबसे प्रमुख स्थान है जिसके लिए लोग दूर दूर से आते है वह स्थान एक नदी है, उसका नाम “फल्गु नदी” है। ऐसा माना जाता है कि मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम ने स्वयं इस स्थान पर अपने पिता राजा दशरथ का पिंड दान किया था। तब से यह माना जाने लगा की इस स्थान पर आकर कोई भी व्यक्ति अपने पितरो के निमित्त पिंड दान करेगा तो उसके पितृ उससे तृप्त रहेंगे और वह व्यक्ति अपने पितृऋण से उरिण हो जायेगा। इस स्थान का नाम ‘गया’ इसलिए रखा गया क्योंकि भगवान विष्णु ने यहीं के धरती पर असुर गयासुर का वध किया था। तब से इस स्थान का नाम भारत के प्रमुख तीर्थस्थानो में आता है और बड़ी ही श्रद्धा और आदर से “गया जी” बोला जाता है।