दिग्विजय सिंह के लिए राजनीतिक कौशल की होगी परीक्षा, कांटे की टक्कर में फंसी सीट, राजगढ़ में होगा खेला?
- मध्य प्रदेश के राजगढ़ सीट पर में चल रही है कांटे की टक्कर, पूरा परिवार उतरा मैदान में
- दिग्विजय सिंह के राजनीतिक कौशल की होगी परीक्षा, लड़ रहे हैं आखिरी चुनाव
- दोनों ही पार्टियों के नेता लगातार कर रहे हैं जनसंपर्क, केंद्र की टीमें भी कर रही हैं धड़ाधड़ रैली और सभा
राजगढ़: कांग्रेस के दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह अपने जीवन का सबसे कठिन चुनाव लड़ रहे हैं। वह 2019 में भोपाल से भाजपा की प्रज्ञा ठाकुर से हार गए थे। इस बार लड़ना नहीं चाहते थे। पार्टी ने मैदान में उतार दिया, तो 77 साल के 32 साल बाद राजगढ़ किले को बचाने के लिए खूब मेहनत कर रहे हैं। यह चुनाव दिग्गी राजा के राजनीतिक कौशल की असली परीक्षा भी ले रहा है। दिग्गी के इस इम्तिहान में उनका पूरा कुनबा मैदान में जुटा है। बेटे और राघौगढ़ विधायक जयर्वधन सिंह ने राघौगढ़ और चाचौड़ा विधानसभा क्षेत्र में मोर्चा संभाला है। दिग्विजय की पत्नी अमृता राय गांव-गांव घूम रही हैं। भाई और दोस्त भी अलग-अलग विधानसभा सीटों में लगे हैं।
दिग्विजय सियासी जंग में अपनाई जाने वाली हर रणनीति आजमा रहे हैं। भाजपा पर हमले कर रहे हैं तो इमोशनल कार्ड भी खेल रहे हैं। सहानुभूति की लहर पर पूरी तरह सवार दिग्विजय लोगों के बीच जाकर कह रहे हैं कि मेरा आखिरी चुनाव है। राघौगढ़ मेरी जन्मस्थली, तो राजगढ़ कर्मभूमि है। भाजपा के लिए भी राजगढ़ मजबूत गढ़ है। इस संसदीय सीट में राजगढ़, ब्यावरा, खिलचीपुर, सारंगपुर, नरसिंहगढ़, राघौगढ़, चाचौड़ा, सुसनेर विधानसभा सीटें आती हैं।
छह पर भाजपा का कब्जा है। सिर्फ राघौगढ़ और सुसनेर सीट कांग्रेस के पास है। पूरे इलाके में आरएसएस की सक्रियता काफी अधिक है।
सांसद रोडमल नागर की कम सक्रियता को लेकर वोटर नाराज हैं, लेकिन मोदी के नाम पर खामोश हैं। इस सीट पर महिलाएं तय करेंगी कि किसे विजय का तिलक लगेगा क्योंकि महिला वोटर उज्ज्वला, राशन और लाडली बहना योजना को लेकर काफी खुश हैं। इस सीट पर लगभग 18 लाख वोटर हैं।
राजगढ़ संसदीय सीट पर मीणा, दांगी, सौंधिया, गुर्जर, तंवर, धाकड़, राजपूत समाज का सबसे अधिक प्रभाव है। कांग्रेस और भाजपा दोनों की ओर से जातिगत समीकरण को साधने की कोशिश की जा रही है। पिछले दो चुनाव से यहां कांग्रेस को हार मिल रही है लेकिन दिग्विजय के आने से इस बार चुनाव थोड़ा अलग तरह का हो गया है।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का बयान चर्चा में है। राजगढ़ में जनसभा के दौरान शाह ने कहा, दिग्विजय सिंह की राजनीति की परमानेंट विदाई करो। आशिक का जनाजा जरा धूम से निकले। सम्मानजनक लीड से हराकर उन्हें घर पर बैठाने का काम राजगढ़ वाले करें।
राजगढ़ संसदीय क्षेत्र में बेरोजगारी सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा है। बड़ी संख्या में युवा बेरोजगार है। रोजगार के कोई संसाधन नहीं है। रोजगार के लिए यहां के लोग राजस्थान और गुजरात पलायन करते है। शिक्षा के लिए यहां के युवा इंदौर, भोपाल और कोटा जाते है। मेडिकल कॉलेज बनाने का काम चल रहा है। यह कृषि बहुल इलाका है।