ललितपुर। अमर शहीद गणेश शंकर विद्यार्थी के जीवन और उनके कार्यों पर चर्चा करते हुए विभिन्न बुद्धिजीवी व्यक्तियों ने रखे। अपने विचार वरिष्ठ पत्रकार सुधाकर तिवारी ने बताया कि अपनी बेबाकी और अलग अंदाज से दूसरों के मुंह पर ताला लगाना एक बेहद मुश्किल काम होता है। कलम की ताकत हमेशा से ही तलवार से अधिक रही है और ऐसे कई पत्रकार हैं, जिन्होंने अपनी कलम से सत्ता तक की राह बदल दी। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान जिन पत्रकारों ने अपनी लेखनी को हथियार बनाकर आजादी की जंग लड़ी थी, उनमें गणेश शंकर विद्यार्थी का नाम अग्रणी है। आजादी की क्रांतिकारी धारा के इस पैरोकार ने अपने धारदार लेखन से तत्कालीन ब्रिटिश सत्ता को बेनकाब किया और इस जुर्म के लिए उन्हें जेल तक जाना पड़ा। सांप्रदायिक दंगों की भेंट चढऩे वाले वह संभवतरू पहले पत्रकार थे। पत्रकार शेरसिंह यादव बताया कि पत्रकारिता करते समय एक पत्रकार को बहुत संघर्ष करना पड़ता है अगर हम बात करें गणेश शंकर विद्यार्थी जी की तब हम देखेंगे कि पत्रकारिता के क्षेत्र में क्रांतिकारी कार्य करने के कारण उन्हें पांच बार सश्रम कारागार और अर्थदंड अंग्रेजी शासन ने दिया। विद्यार्थी जी के जेल जाने पर श्प्रताप्य का संपादन माखनलाल चतुर्वेदी व बालकृष्ण शर्मा नवीन करते थे। उनके समय में श्यामलाल गुप्त पार्षद ने राष्ट्र को एक ऐसा बलिदानी गीत दिया, जो देश के एक कोने से लेकर दूसरे कौने तक छा गया। यह गीत श्झण्डा ऊंचा रहे हमारा्य है। इस गीत की रचना के प्रेरक थे अमर शहीद गणेश शंकर विद्यार्थी। विंध्य सृजन सेवा समिति के अध्यक्ष राजेश पाठक कहते है कि सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक समस्याओं पर विद्यार्थी जी के विचार बड़े ही निर्भीक होते थे। विद्यार्थी जी ने देशी रियासतों द्वारा प्रजा पर किए गए अत्याचारों का तीव्र विरोध किया। पत्रकारिता के साथ-साथ गणेश शंकर विद्यार्थी की साहित्य में भी अभिरुचि थी। उनकी रचनाएं श्सरस्वती्य, श्कर्मयोगी्य, श्स्वराज्य्य, श्हितवार्ता्य में छपती रहीं। श्शेखचिल्ली की कहानियां्य उन्हीं की देन है। उनके संपादन में श्प्रताप्य भारत की आजादी की लड़ाई का मुखपत्र साबित हुआ। सरदार भगत सिंह को श्प्रताप्य से विद्यार्थी जी ने ही जोड़ा था। विद्यार्थी जी ने राम प्रसाद बिस्मिल की आत्मकथा श्प्रताप्य में छापी, क्रांतिकारियों के विचार व लेख श्प्रताप्य में निरंतर छपते रहते थे। पत्रकार अमित लखेरा ने कहा कि कल और आज में कोई अंतर नहीं है उस समय जिस प्रकार गणेश शंकर विद्यार्थी को अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष करना पड़ा था आज भी पत्रकारों को उसी तरह से भ्रष्टाचार के विरुद्ध भी संघर्ष करना पड़ता है और अपनी कलम से उस भ्रष्टाचार को उजागर करने के लिए कई पत्रकारों को जान भी गंवानी पड़ी है। अधिवक्ता संवाद के पुष्पेंद्र सिंह चौहान ने बताया कि गणेश शंकर विद्यार्थी कहते थे श्श्मैं पत्रकार को सत्य का प्रहरी मानता हूं-सत्य को प्रकाशित करने के लिए वह मोमबत्ती की भांति जलता है। सत्य के साथ उसका वही नाता है जो एक पतिव्रता नारी का पति के साथ रहता है। पतिव्रता पति के शव साथ शहीद हो जाती है और पत्रकार सत्य के शव के साथ। श्श्पत्रकार शिरोमणि गणेश शंकर विद्यार्थी ने पत्रकारिता को समस्त मानव जाति के कल्याण के लिए कार्य करने की प्रेरणा दी। उन्होंने कहा कि- श्श्समस्त मानव जाति का कल्याण हमारा परम उद्देश्य है और इस उद्देश्य की प्राप्ति का एक बहुत जरूरी साधन हम भारतवर्ष की उन्नति समझते हैं।