ललितपुर। बाबा सदनशाह उर्स मुबारक मौके पर आयोजित परिचर्चा को संबोधित करते हुए नेहरू महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य प्रो. भगवत नारायण शर्मा ने कहा है कि सदियों से भेदभाव की सामंती चट्टान के तले सहृदयता का जो प्रेमिल जल सिमट रहा था वह निर्गुण-सगुण गंगा-जमुनी सूफियों और संत महात्माओं की द्विधाराओं में अचानक फूट पड़ा। देश के करोड़ों- करोड़ मुरझाये हृदयों को रससिक्त कर गया। वस्तुतरू इन हिन्दु और मुस्लिम भक्तों का संदेश है कि प्रेम से रिक्त व्यक्ति जिन्दा होते हुए भी, मात्र एक मु-ी भर राख है। सदन बाबा की तरह हम सभी बराबरी से ऐसा तौलें, न किसी को बहुत अधिक हो और न किसी को बहुत कम हो। पर ऐसा करने के लिए तराजू की डंडी को सीधा रखना पडेगा। छोटा बड़ा कोई आये, डंडी सबके लिए एक-सी रहती है, न ऊंची न नीची। सजन(सदन) कसाई जैसे कर्मयोगी के कर्म को जप यज्ञ ही समझना चाहिए। हदीस का भी फरमान है कि परवरदिगार आलम ने हवा, पानी, जमीन और आग के रूप में इतना कुछ दिया है कि सबका पेट पल सकता है, कोई भी भूख से नहीं मर सकता है, बस लालच का पेट कभी नही भर सकता। परन्तु इन सबों से बढकर जो चीज उन्होंने हमें दी है, उसका नाम है-मीजान या तराजू। और जब सदन कसाई के तराजू के पलड़े पर, बांट के रूप में साक्षात ब्रहम विराजे हों तो इंसाफ की समदर्शी तराजू से कम ज्यादा कैसे तुल सकता है? उतना ही तुलेगा, जितना सबके लिए पेट समाता हो। संत तुकाराम कहते हैं-सजन के साथ विकूँ लागे माँस मैं इसलिए अपने भक्त की मदद तराजू के झूले पर बैठकर करता हूँ। भक्त नाभादास जी ने 108 भक्तों की माला में भक्त सदन को भी पुरोया है तथा सिक्खों के गुरुग्रन्थ साहब में 5 वें गुरु श्री अर्जुनदेव महराज ने उनकी प्रेमलक्षणा भक्ति के पद सम्मान के साथ समाविष्ट किये हैं।