आस्थाउत्तर प्रदेश

सैकड़ों साल पुराने इस जालौन के मंदिर में डकैतों की रही है विशेष आस्था. जानिए इसके रहस्य

बुंदेलखंड के कई जिलों में डकैतों का आतंक रहा है. ये डकैत नवरात्रि पर अपनी पूजनीय देवी की पूजा अर्चना भी करते रहे हैं. डाकुओं से जुड़ा ऐसा ही एक मंदिर जालौन के बीहड़ों में आज भी मौजूद है. पहले यहाँ आस्था के आगे डाकू सिर झुकाते थे. और मनोकामना पूरी होने पर घंटा या त्रिशूल के आकर का भाला समर्पित किया करते थे. लेकिन अब यहां गोलियों की आवाजें नहीं सुनाई देती बल्कि भक्तों के भजन और घंटों की आवाज सुनाई देती है.

जालौन वाली माता की प्राचीन प्रतिमा.

बुंदेलखंड के कई जिलों में दस्युओं का आतंक रहा है. लेकिन वही डकैत नवरात्रि पर अपनी आराध्य देवी की पूजा अर्चना किया करते थे. डाकुओं समय का एक ऐसा ही मंदिर जालौन के बीहड़ों में मौजूद है. जहां कभी आस्था के आगे डाकू अपना सिर झुकाते थे. इन बीहड़ों में कभी डाकुओं की गोलियों की तड़तड़ाहट गूंजती थीं. लेकिन अब वहां मंदिर के घंटों की आवाज सुनाई देती हैं. कोरोना की बंदिशें हटने के बाद जालौन के बीहड़ों में फिर से जालौन वाली माता के दर्शन के लिये जनसैलाब उमड़ पड़ा है.

जालौन वाली माता का मंदिर.

पिछले कई दशकों तक जालौन सहित आस-पास के जनपदों इटावा, औरैया आदि जगहों पर दस्युओं ने अपना वर्चस्व कायम कर रखा है. यह मंदिर यमुना और चम्बल नदी के किनारे बना हुआ है. जहां अधिकतर डाकू अपना आशियाना बनाते रहे हैं. दो-तीन दशकों से डाकुओं का साम्राज्य खत्म होने से अब लोग भय मुक्त होकर दर्शन करने आ रहे हैं. नवरात्रि के समय भक्तों की संख्या में अच्छी खासी बढ़ोत्तरी हो रही है.

ऐसी कहावत है कि बीहड़ को जिस डकैत ने अपना घर बनाया है. उसकी विशेषता रही है कि वह जालौन वाली माता के मंदिर में दर्शन करने के साथ ही घंटे भी चढ़ाता रहा है. डकैत मलखान सिंह, पहलवान सिंह, निर्भय सिंह गुर्जर, फक्कड़ बाबा, फूलन देवी, लवली पाण्डेय एवं अरविन्द गुर्जर समेत कई ऐसे डकैत रहे हैं. जो समय-समय पर इन मंदिरों में गुपचुप तरीके से माता के मंदिर पर माथा टेकने आते रहे हैं. लेकिन डाकूओं का सफाया होने के बाद लोगों का रुझान इस मंदिर की तरफ बढ़ने लगा है.

जालौन वाली माता के मंदिर का मुख्य द्वार.

नवरात्रि पर बुंदेलखंड व दूर-दराज के इलाकों से लोग यहां माता के दरबार में माथा टेकने आते हैं. इस मंदिर की विशेषता है कि यह द्वापर युग में पांडवों के द्वारा स्थापित किया गया था. तभी से इस का एक प्रमुख स्थान रहा है. ये चंदेल राजाओं के समय खूब प्रसिद्ध रहा है. लेकिन डकैतों के कारण आजादी के बाद ये स्थान चम्बल का इलाका कहलाने लगा था. डकैतों के डर से इस मंदिर में आम लोग आने से डरते थे. लेकिन पुलिस और एसटीएफ की सक्रियता के चलते डकैत मुठभेड़ के दौरान मारे जा चुके हैं और कुछ ने मारे जाने के डर से आत्म समर्पण कर चुके हैं.

जालौन वाली माता के दर्शन के लिए हजारों की संख्या में रोज श्रद्धालु बीहड़ मे स्थित मंदिर में दर्शन करने पहुंच रहे हैं. यहां के स्थानीय निवासियों ने बताया कि यह मंदिर 1000 साल पुराना है. यहां पांडवों ने तपस्या की थी. महर्षि वेदव्यास द्वारा मंदिर की स्थापना की गई थी. यहां डकैत आते थे लेकिन किसी ग्रामीण व श्रद्धालु को परेशान नहीं करते थे. हालांकि इस देवी को डकैतों की कुल देवी कहा जाता है.

रिपोर्ट :- आश अनुरुद्ध

पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ का बड़ा बयान , हम चुनाव की तैयारियों में जुटे
खबर देखने के लिये लिंक पर क्लिक करें :

https://www.facebook.com/BundeliBauchharOfficial/videos/522026352965218

Show More

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button