भोपाल में 120 साल पुरानी गणपति की दुर्लभ मूर्ति, जिसमें गणेश जी दोनों पत्नी ऋद्धि-सिद्धि, पुत्र लाभ-शुभ और बहुओं कुशल-क्षेम के साथ विराजमान
भोपाल: राजधानी में गणेशोत्सव कोरोना की वजह से इस बार गणपति घर-घर विराजित किए गए हैं। सार्वजनिक रूप से भगवान गणपति की झांकी लगाना और पूजा-अर्चना पर प्रतिबंध है। बात घरों में विराजित विघ्नहर्ता भगवान श्री गणेश की हो रही है तो बता दें कि भोपाल में गणपति की करीब 120 साल पुरानी एक ऐसी दुर्लभ मूर्ति भी है, जिसमें वे अपने पूरे परिवार के साथ हैं। यह दुर्लभ मूर्ति शत प्रतिशत मिट्टी की बनी हुई है, जिसमें गजानन अपनी दोनों पत्नी ऋद्धि-सिद्धि, पुत्र लाभ-शुभ और बहुओं कुशल-क्षेम के साथ विराजमान हैं। दो फीट ऊंची इस प्रतिमा में कमी है तो सिर्फ उनके पोते आमोद-प्रमोद की।
गणेश की यह मूर्ति लखेरापुरा निवासी मुन्नालाल पटवा के निवास पर मौजूद है, जो उनके दादा जयनारायण पटवा को उनके समधी दौलतराम पटवा ने उपहार स्वरूप भेंट की थी। पटवा ने बताया कि स्व. दौलतरामजी गणेश जी के अनन्य भक्त थे। उन्होंने इतवारा के ही मूर्तिकार छोटे सिंह से इस मूर्ति को बनवाया था। इसमें रिद्धि, कुशल और शुभ बायीं तरफ और सिद्धि, क्षेम और लाभ दायीं तरफ विराजमान हैं।
मूर्ति छोटी ही बनवाई, जिससे सहजने में परेशानी न हो।उनका कहना है कि मूर्ति इसलिए छोटी बनवाई गई थी, ताकि इसे सहजने में किसी प्रकार की परेशानी न हो। खास बात यह है कि प्रतिमा मिट्टी की होने के बाद इसमें कहीं कोई दरार नहीं है। पटवा चार से पांच साल में प्रतिमा के कुछ हिस्सों में प्राकृतिक कलर कराते हैं। वे कहते हैं कि सिर्फ गणेशोत्सव में ही हम इसे आमजनों के दर्शन के लिए सार्वजनिक करते हैं। मूर्ति के 120 साल पुराने होने के सवाल पर पटवा कहते हैं, इसके निर्माण का सटीक वर्ष तो हमें नहीं पता, लेकिन स्व. दौलतरामजी का निधन 35 साल पहले 90 वर्ष की उम्र में हुआ था। इस अनुमान से हमारा परिवार इस मूर्ति का निर्माण वर्ष 1899 के आसपास का ही मनता है।
भोपाल में ही बनी है मूर्ति
पटवा के मुताबिक इस मूर्ति को भोपाल के ही इतवारा में मूर्तिकार छोटे सिंह ने बनाया था। पटवा कहते हैं कि इस धरोहर को हम काफी जतन से संभालकर रखते हैं। मूर्ति खराब न हो इसके लिए हमने इसे कांच में फ्रेम करा दिया है। गणेशोत्सव के दौरान हम जब इस मूर्ति को लोगों के दर्शनों के लिए रखते हैं तो इस बात का विशेष ध्यान रखते हैं कि कोई इस पर फूल-माला न चढ़ाए।