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हम सबसे इस तरह नहीं रूठते राजू

@ राकेश अचल

एक आभासी दुनिया के जरिये राजू का हम सबसे कोई आधी सदी का याराना था जो आज अचानक टूट गया ।दुनिया को हसाने वाला राजू हम सबको अचानक बिलखता छोड़ गया ।राजू को पहली बार १९७० में ‘मेरा नाम जोकर ‘ में पहली बार देखा था ।तब राजू नाबालिग था लेकिन तीन साल बाद राजू ‘बॉबी ‘ के जरिये जब फिर आमने -सामने आया तो एकदम बदला हुआ था ।राजू इन पचास सालों में साल दर-साल लगातार बदलता रहा लेकिन सकी हँसी और अनार के दानों जैसी दंतपंक्ति कभी नहीं बदली ।यहि राजू ऋषिकपूर था ।

ऋषि कपूर की पहली फिल्म ‘ बॉबी ‘ग्वालियर में और आखरी फिल्म ‘कपूर ऐंड संस’ अमेरिका के शहर अटलांटा में देखी थी ।यकीन मानिये दोनों को पहचानने में बड़ी गफलत हुई और जब पता चला की कपूर ऐंड संस के दादा जी अपने राजू ही हैं तो आँखों पर भरोसा नहीं हुआ ।युवावस्था से लेकर जब तक सिनेमा देखने का शौक नशा बनकर हावी रहा तब तक राजू की लगभग सौ में से अस्सी फ़िल्में तो देखी ही होंगीं ।उनकी अगली फिल्म ‘नमकीन ‘ आने वाली थी लेकिन वे अचानक फिल्म और दुनिया छोड़कर चले गए ।
सिनेमा संसार के रतिष्ठित कपूर खानदान के होने के कारण अभिनय ऋषि के डीएनए में था ।जिसने भी ऋषि के दादा पृथ्वीराज और पिता आज कपूर का अभिनय देखा होगा उसे इस खानदान की अभिनय क्षमता का पता होगा इसलिए ऋषि के अभिनय पर तप्सरा करने का कोई अर्थ नहीं है ।ऋषि के बारे में चर्चा होगी तो एक मस्त-मौला इंसान की चर्चा होगी जिसका जाना हर भारतीय सिनेमा दर्शक को रुला गया है ।ऋषि ने हाल ही में जब ‘लाकडाउन’ के दौरान शराब की दूकान खोले जाने की वकालत की थी तब उनकी खूब आलोचना हुई थी लेकिन मुझे खूब हँसी आई थी क्योंकि मै जानता हूँ की ऐसा केवल ऋषि यानी अपना राजू ही कह सकता था ।
कैंसर के शिकार ऋषि ने अपनी जिंदादिली को अपनी आखरी सांस तक नहीं मरने दिया [ ऐसा उनके डाक्टरों का कहना है ]उनके जीवन में सफलताओं और असफलताओं की लम्बी फेहरिश्त थी लेकिन उन्होंने किसी की परवाह नहीं की ।वे टायर हुए लेकिन रिटायर नहीं हुए ।उनके हाथ में आज ही एक फिल्म थी ।वे एक कामयाब चॉकलेटी हीरो से बाहर निकलकर उन तमाम भूमिकाओं में नजर आये जिन्हें कुछ इन-चुने अभिनेता ही स्वीकार कर सकते थे ।वे फिल्मी दुनिया के न शहंशाह बने और न बादशाह फिर ही वे सबसे अलग और एक जरूरी अभिनेता थे ।उनके जैसे अभिनेता अब कम ही पैदा होते हैं ।
अपने जमाने की सबसे खरी अभिनेत्री नीतू सिंह के साथ उन्होंने जो हासिल किया वो कम ही लोगों को नसीब होता है ।उन्होंने हर भूमिका को साकार करने का प्रयास किया ।संजीदगी जिंदादिली मसखरापन और माध्यम वर्गीय समाज के प्रतिनिधि के रूप में वे हर भूमिका में सराहे गए ।जो लोग उन्हें बॉबी के राजू के रूप में याद करते हैंवे ही लोग उन्हें ‘ आल इज वेल’ के भजनलाल भल्ला के रूप में पसंद करते हैं ।कपूर एन्ड संस के अमरजीत कपूर और मुल्क के मुराद अली मोहम्मद को भुला पाना मुश्किल है ।अफ़्सोस यही है की ऋषि कपूर अपने जमाने के स क्रूर समय में गए हैं जहां लोगों को उनके साथ मसान तक जाने की इजाजत नहीं है उनके अंतिम दर्शनों को तरसते असंख्य लोग अपने राजू को ठीक उसी तरह नहीं भुला पाएंगे जैसे कोई किसी खुशबू को नहीं भुला पाता।इरफान के बाद ऋषि कपूर का जाना उतना ही त्रासद है जितना खुले घाव पर नमक का छिड़का जाना ।

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