चक्रवर्ती भरत की निकालीदिग्विजय यात्रा किया जोरदार स्वागत
महरौनी (ललितपुर) कल्पद्रुम महामंडल विधान के तहत रविवार को नगर के प्रमुख मार्गों से चक्रवती भरत की दिग्विजय यात्रा निकाली गई। इस यात्रा में बडी संख्या मे श्रद्धालु़ शामिल हुए। नगर भ्रमण के दौरान यात्रा के बीच में नृत्य करते इंद्र-इंद्राणी लोगों का प्रमुख आकर्षण का केंद्र बने। यात्रा के दौरान ऊंट हाथी, घोड़े व बग्घियों साथ चल रहीं थी। जैन समाज के अलावा विभिन्न वर्गों के लोगों ने चक्रवती भारत की दिग्विजयय यात्रा का जगह-जगह स्वागत किया।
दिग्विजय यात्रा से पूर्व प्रातःकाल मे आर्यिका 105 विज्ञानमति माताजी ससंघ सानिध्य में तीर्थंकरों की पूजा-अर्चना की गई।इस मौकै पर आर्यिका 105 विज्ञानमति माताजी ने धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहा कि विधान में भगवान ऋषभदेव के दोनों पुत्रों भरत और बाहुबली की अहम भूमिका है । भगवान आदिनाथ को राज पाठ के दौरान जब वैराग्य की प्राप्ति हो जाती है । तो वह अपने दोनों पुत्रों भरत और बाहुबली को अपना राज्य बराबर-बराबर बांट कर वन जाकर तपस्या करने लगते हैं तभी भरत को चक्रवर्ती बनने की सूझती है और वह समस्त पृथ्वी के राजाओं को जीतकर जब वापस आते हैं तब उन्हें एहसास कराया जाता है कि अभी वह चक्रवर्ती नहीं बने हैं क्योंकि अभी उनके भाई राजा बाहुबली का राजपाट अलग हैं ।जब उन्हें जीतेंगे तब उनकी चक्रवर्ती यात्रा पूरी होगी वह अपने भाई को अपने अधीन होने का संदेश भेजते है मगर बाहुबली उसे मानने से इनकार कर देते हैं तब जाकर वह अपनी दिग्विजय यात्रा प्रारम्भ करते हैं। मगर भाई बाहुबली दिग्विजय यात्रा को बीच में ही रोक देते हैं और भरत को लौट जाने की बात कहटे है मगर भरत को चक्रवर्ती सम्राट बनना था इसलिए उन्होंने बाहुबली को युद्ध के लिए ललकारा।
युद्ध की बात सुन कर दोनों की तरफ से सभी लोग चिंतित होने लगे क्योंकि दोनों भाई इतनी बलशाली रहे अगर यह दोनों सालों साल भी लड़े तो इनका हार पाना मुश्किल था इसीलिए कुलगुरु ने आकर दोनों को बिना सेना की लड़ने के लिए कहा और यह तय किया गया कि दोनों के बीच 3 प्रकार की युद्ध होंगे और इस युद्ध में जो विजयी होगा वह चक्रवर्ती सम्राट माना जाएगा । वह तीन युद्ध नेत्र , जल , मल युद्ध हुए और तीनों में बाहुबली ने भरत को हराकर चक्रवती पद पा लिया । मगर जब भरत ने कहा कि मैं हार गया तो बाहुबली ने कहा कि भरत भाई तुम नहीं हारे तुम्हारा घमंड हारा है तुम्हारा अहंकार हारा है और तब बाहुबली को एहसास हुआ कि मैंने अपने भाई को हरा दिया है और यह एहसास होती ही उन्हें संसार से बैराग उत्पन्न हो जाता है और वह राज्य पाट छोडकर तप के लिए विहार कर जाते है |सर्वतोभद्र अतिशय तीर्थ मे आर्यिका संघ के सानिध्य मे डां राजकुमार पारौल द्वारा भगवान शांतिनाथ की प्रतिमा पर रजतकलश चढाया |सभी धार्मिक क्रियायें ब्र●अंकित भैया सहज के दिशानिर्देश मे संपन्न हुई |
दोपहर दो बजे बानपुर चौराहे से दिग्विजय यात्रा का शुभारंभ हुआ। एक किलोमीटर लंबी इस यात्रा में कल्पद्रुम विधान के सभी पात्र बग्घियों में सवार थे|वही चक्रवर्ती हाथी पर सवार होकर शोभायात्रा का नेतृत्व कर रहे थे।चक्रवर्ती बनने का सौभाग्य आनंद सराफ ज्वैलर्स को मिला वही वग्गियो मे सौधर्म इन्द्र पवन घिया, कुबेर इन्द्र वीरेंद्र डोगरया,महायज्ञ नायक श्रीनिवास कठरया, बाहुवली सुमत मिठया,ईशान इंद्र सुनील भायजी,सानत इंद्र राजीव सिंघई कुम्हेडी वाले, माहेद्र इंद्र महेद्र सिंघई बाबा, यज्ञ नायक हेमंत सिंघई, प्रमोद सिंघई, अंकित चौधरी, आनंद सराफ, ध्वजारोहण कर्ता अनिल कठरया, महामंडलेश्वर राकेश पठा, संजीव सराफ, उत्तम पडंवा, सुखनंदन ककडारी तथा मंडलेश्वर के रूप मे सुनील सैदपुर, ऋषभ मलैया, प्रमोद मलैया तथा डां भरत जैन गुढा सपरिवार वग्गियो मे विराजमान थे |
जैन समाज की महिलाएं एवं पुरुष इंद्र-इंद्राणी के रूप में कतारबद्ध चल रहे थे। जैन समाज द्वारा इस यात्रा के स्वागत में जगह-जगह आकर्षक रंगों की रंगोलियां सजाई गईं।दिग्विजय यात्रा का समापन श्री सर्वतोभद्र अतिशय तीर्थ पर हुआ |कमेटी द्वारा टीकमगढ़ विधायक राकेश गिरी, नगर पंचायत अध्यक्ष कृष्णा सिंह, उपजिलाधिकारी अमित भारती, पुलिस क्षेत्राधिकारी केशव नाथ, कोतवाली प्रभारी धर्मैद्र सिंह एल आई ओ अरविंद सिंह का सम्मान किया गया |कार्यक्रम को सफल बनाने मे सकल समाज एवं जंगल ग्रुप,मंगल ग्रुप और आदर्श ग्रुप का सहयोग रहा |