
हंगामा है क्यों बरपा……….
– कृषि अध्यादेशों पर लगी राष्ट्रपति की मुहर, बने कानून
– संसद से सड़क तक देश भर में हंगामा
संसद से सड़क तक, सत्ता के गलियारों से गाँव के चौबारों तक, कस्बों से शहर तक, मंडियों- बाज़ारों में, राजमार्ग से रेलमार्ग तक हर ओर अफरा- तफरी फैली है, हंगामा हो रहा है, आंदोलन हो रहे हैं, बहिष्कार हो रहे हैं और मज़े की बात यह है कि हँगामखेजों और आंदोलनकारियों को हमेशा की तरह यह पता ही नहीं है कि वे यह सब क्यों कर रहे हैं। यह स्वतः स्फूर्त आंदोलन नहीं है। बस कोई आया और कानों कान कह गया- ‘जागो किसानों जागो सरकार तुम्हारे खिलाफ षड्यंत्र रच रही है तुमको जमीन मालिक से गुलाम बनाने की तैयारी हो रही है’ और शुरू हो गया राजनीति का घिनौना खेल। भोले भाले किसानों को उनके घरों-खेतों से उठाकर सड़कों, राजमार्गों, मंडियों, रेल पटरियों पर खड़ा कर दिया गया जिनके साथ बच्चे, बूढ़े, महिलाएं भी बहुत बड़ी संख्या में शामिल हैं। लोकतंत्र का भयावह और विद्रूप भरा चेहरा है यह। डूबती, मृतप्राय कांग्रेस को संजीवनी तो बिखरे विपक्ष को अपनी उपादेयता सिद्ध करने का एक मौका मिल गया है, जिसे तत्काल भुनाने में सब पूरी ताकत से लग गए हैं।
लोकसभा में 17 सितम्बर को जैसे ही सरकार ने कृषि उत्पाद व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन) विधेयक और किसान सशक्तिकरण एवं संरक्षण विधेयक पेश किये मानो भूचाल आ गया विपक्ष तो मौके की तलाश में था ही एनडीए की 22 वर्ष पुरानी सहयोगी पार्टी शिरोमणि अकाली दल ने भी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। शिअद के सुखबीर सिंह बादल ने विधेयकों को किसानों को बर्बाद करने वाला ठहराते हुए पार्टी कोटे से कृषि मंत्री हरसिमरत कौर बादल के सरकार से इस्तीफा दिलाने की घोषणा कर डाली और देर शाम हरसिमरत कौर ने प्रधानमंत्री कार्यालय जाकर अपना इस्तीफा यह कहते हुए सौंप दिया कि उनको किसानों की बहन-बेटी बनकर उनके साथ खड़े रहने में गर्व है।
कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने विपक्ष पर गंदी राजनीति करने का आरोप लगाते हुए कहा कि वे एमएसपी पर भ्रम फैला रहे हैं, बाद में प्रधानमंत्री मोदी ने स्वयं कहा कि एमएसपी की व्यवस्था खत्म नहीं कि जाएगी और बराबर चलती रहेगी वहीं विपक्ष का आरोप है कि मोदी सरकार शुरू से ही कॉरपोरेट जगत के लोगों को लाभ पहुंचाने वाले फैसले ले रही है।
20 सितम्बर को राज्यसभा से विधेयकों के पास होने के बाद 27 सितम्बर को भारत के राष्ट्रपति की मंजूरी मिलते ही तीनों विधेयकों को कानूनी जामा पहना दिया गया इसके पूर्व 15 सितम्बर को आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम लोकसभा में पारित किया जा चुका था। संसद के मानसून सत्र में पारित ये तीनों विधेयक पाँच जून को घोषित तीनों अध्यादेशों की जगह लेंगें।
मगर इस बीच में देश की संसद ने जो कुछ देखा उसने लोकतंत्र को शर्मसार कर दिया। राज्यसभा में सदन की कार्यवाही के दौरान विपक्षी सांसदों ने संसदीय मर्यादाओं को तार तार कर दिया। विधेयकों के विरोध में सांसद उपसभापति के आसन तक ही नहीं पहुंचे बल्कि उनकी टेबल पर भी चढ़ गए, बिल की प्रतियां और रूल बुक फाड़ने की कोशिश की, मार्शलों से धक्का मुक्की की यहाँ तक कि छीना-झपटी में उपसभापति के माइक भी टूट गए। कुछ सांसदों ने वेल में हंगामा करते हुए पर्चे फाड़ कर फेंके तो कुछ अपनी टेबलों पर चढ़कर हंगामा करते रहे, जिसकी परिणिति यह हुई कि हंगामा करने वाले आठ विपक्षी सांसदों को पूरे सत्र के लिए सदन से निलम्बित कर दिया गया। राज्यसभा के सभापति वेंकैया नायडू ने विपक्षी सांसदों के आचरण की कड़ी भर्त्सना की और कहा कि सांसदों ने उच्चसदन और संसद की गरिमा भंग की है। उपसभापति को आपत्तिजनक शब्द कहे और यहाँ तक कि अगर मार्शलों को समय पर न बुलाया जाता तो जाने उनके साथ क्या होता।
सरकार का कहना है कि भारत के कृषि इतिहास में यह क्रांतिकारी कदम है। यह विधेयक न केवल कृषि क्षेत्र में आमूलचूल परिवर्तन लाएंगे बल्कि इनसे करोड़ों किसानों का सशक्तिकरण होगा। मंडियों में फैले भ्रष्टाचार पर लगाम लगेगी, किसान अपने उत्पाद को मनचाही कीमत पर कहीं भी किसी को भी बेच सकेंगे और तीन दिन में उनका भुगतान करना खरीददार के लिए बाध्यकारी होगा,किसान कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग कर सकेंगे। इसके अलावा अनाज, दालें, आलू, प्याज़ व तिलहन आदि के भंडारण की सीमा खत्म कर देने से किसान को प्रतिस्पर्धी मूल्य प्राप्त होगा। सरकार के इस दावे का पूर्व केंद्रीय कृषि मंत्री सोमपाल शास्त्री, कृषि अर्थशास्त्री आर विक्रम सिंह सहित तमाम विशेषज्ञों ने कमोवेश समर्थन किया है और संभावना जताई है कि अगर एमएसपी व्यवस्था सरकार जारी रखती है तो देश के अन्नदाता के दिन बहुर सकते हैं। मगर विपक्ष है कि मानता नहीं, विरोध के लिए विरोध के अपने जन्मसिद्ध अधिकार का भरपूर उपयोग करते हुए उसने चिंगारी सुलगा दी है और भड़कती हुई आग पर अपनी चुनावी रोटियां सेकने के लिए तैयार है।
✍️राजीव बिरथरे- बरुआसागर