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अनुशासन प्रिय, कठोर परिश्रमी व सेवाभावी होने से ही कोई “दिग्विजय” बन सकता है

योगेन्द्र सिंह परिहार, भोपाल।

दिग्विजय का मतलब दिशाओं को जीतने वाला। दिशाएं जीतने का सीधा अर्थ है अनुशासन प्रिय, कठोर परिश्रमी व सेवाभावी होना तब जाके कोई दिग्विजय बन सकता है। इस नाम को चरितार्थ करने वाले श्री दिग्विजय सिंह जी के जीवन को पढ़ना, लिखना और सतत मनन करना चाहिए। तभी आपको दिग्विजयसिंह होने के असल मायने पता होंगे। उदारता, सहनशीलता और संवेदनशीलता उनमें कूट कूट कर भरी है। आज वे उम्र के जिस पड़ाव में हैं मैंने इस उम्र के लोगों को अक्सर लड़खड़ाते देखा है। लोग इस उम्र के लोगों को बूढ़ा कहने लगते हैं। लेकिन जब आपकी नजर श्री कमलनाथ जी, श्री दिग्विजय सिंह जी सरीके राष्ट्रीय स्तर के नेताओं पर पड़ेगी तो आपको इनके चेहरे पर उम्र का असर दिखाई ही नही देगा। आपको नही लगता कि शरीर को स्वस्थ और स्फूर्त रखना सभी को सीखना चाहिए। गांधी जी कहते थे कि “स्वस्थ वही है जो बिना थकान के दिन भर काफी शारीरिक और मानसिक मेहनत कर सके”। आप इन नेताओं की दिनचर्या से ही समझ जाएंगे कि वे कितने स्वस्थ और मानसिक रूप से कितने सुदृढ हैं।

महात्मा गांधी जी कहते थे कि “जिन्होंने भी जीवन की ऊंचाइयों को छुआ है, उनमें कठोर अनुशासन का पालन करने का दृढ़ संकल्प आपको साफ-साफ दिखाई देगा। यह लगाम और चाबुक दोनों का काम करता है।” वास्तव में मैंने श्री दिग्विजयसिंह जी के जीवन का सबसे बड़ा पहलू समझा है तो वह अनुशासन ही है। वे सुबह साढ़े 4 बजे उठ जाते हैं और तब भी जब वे देर रात 2 बजे सोने जाते हैं। सुनने में आसान लगता है कभी करके देखिए तब एहसास होगा कि स्वयं को अनुशासित करना कितना कठिन है। वे नियमित योगा करते हैं। वे नियमित स्नान-ध्यान और पूजन करते हैं। वे दिन भर गर्म पानी का सेवन करते हैं। प्रत्येक दिन की दिनचर्या एक दिन पहले बना लेते हैं और उस पर 100 प्रतिशत अमल करते हैं। ये नियमितता सीखने योग्य है। गांधी जी कहते थे “नियमितता सीखने की चीज है, यह स्वाभावगत चीज़ नही है, अभ्यास-साध्य है”।

गांधी जी कहते थे “शक्ति शारीरिक क्षमता से उत्पन्न नही होती। वह अजेय संकल्प से उत्पन्न होती है”। श्री दिग्विजय सिंह जी सुबह घर से निकलते ही लोगों से मुलाकात करने लगते हैं वे उनकी बातें तत्परता से समझते हैं और फिर ये विश्वास दिलाकर लोगों को संतुष्ट भी करते हैं कि वे काम करवा देंगे। क्या वे ऐसा व्यवहार एक दो व्यक्ति के साथ करते हैं? जी नही ऐसा व्यवहार वे हर मिलने वाले के साथ करते हैं उनसे पत्र लेते हैं और उनके लिए संबंधितों को पत्र लिखते हैं। भीड़ को देखकर मैंने उन्हें कभी विचलित होते नही देखा। वे सभी से मिलते हैं, वे बेबाक तरीके से लोगों के घरों में मिलने जाते हैं। मैंने सुना था जब वे प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष थे तब वे रोज़ दो-तीन सौ किलोमीटर की यात्रा करते थे लेकिन आश्चर्य ये है कि आज भी वे महीने में कई बार दिन भर में तीन-चार सौ किलोमीटर की सड़क मार्ग से यात्रा कर लेते हैं। ये परिश्रम की कठोरता की पराकाष्ठा है 70 पार उम्र के बाद भी जज्बे के साथ देश के किसी भी कोने से आये बुलावे में शामिल होने चले जाते हैं। निश्चित ही ऐसा कठोर परिश्रम सिर्फ शारीरिक शक्ति से नही बल्कि दृढ़ संकल्प से ही सम्भव हो सकता है।

गांधी जी कहते थे कि “हुकूमत का क्षेत्र छोटा रहता है, लेकिन सेवा का क्षेत्र तो बहुत बड़ा रहता है”। श्री दिग्विजय सिंह जी के पूरे जीवन का निचोड़ यही है कि वे अत्यंत सेवाभावी हैं। जन सेवा की भावना से ओतप्रोत होने की वजह से ही वे दिन भर लोगों से संवाद करते हैं उनकी समस्याओं का निराकरण करते हैं। उनकी सेवाभाव और संकल्प का सबसे अच्छा और ताज़ा उदाहरण है कि उन्होंने भोपाल से लोकसभा चुनाव लड़ा और जनता ने उनका साथ नही दिया बावजूद इसके वे “भोपाल विज़न” पर दिन रात काम कर रहे हैं। भोपाल का सुनियोजित और सुसंगत विकास कैसे हो इस पर वे न सिर्फ बात कर रहे हैं बल्कि कमलनाथ सरकार के सहयोग से धीरे-धीरे उन योजनाओं को ज़मीन पर उतारने का काम कर रहे हैं। आज भोपाल में जो कुछ छोटे-बड़े संस्थान दिखाई दे रहे हैं वे दिग्विजय सिंह जी के मुख्यमंत्रित्व काल की देन हैं और अब जो दिखाई देंगे वे भी श्री दिग्विजयसिंह जी के प्रयासों की ही देन होगी।

राजनीति में जिस तरह का उदाहरण श्री दिग्विजय सिंह जी ने पेश किया है वह अतुलनीय है और आज के सभी युवाओं को उनसे सीखने की ज़रूरत है। संगठन की विचारधारा को सर्वोपरि रखकर एक-एक कार्यकर्ताओं के हितों की रक्षा करने को हमेशा तैयार रहना ये भावना हर नेता को सीखने की ज़रूरत है। कार्यकर्ता पार्टी की रीढ़ की हड्डी है, नींव है। सरकारें आएंगी जाएंगी लेकिन नींव के पत्थरों को जिन्होंने पूज लिया वही अजेय होगा वही दिग्विजय होगा।

परम् आदरणीय राजा साहब श्री दिग्विजयसिंह जी को जन्मदिन की अनंत शुभकामनाएं।

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